विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास-स्थली की शोभावैसे वहाँ भी किसी प्रसंग के संदर्भ में वेदान्त की कथा एकाध-दो दिन चली, तो हमारे एक मित्र श्रीसुदर्शन सिंह चक्र ने पहले तो हमसे लड़ाई की, और उसके बाद लड़ाई करके बिलकुल नंगे भाग गये; रातभर कहीं ठिठुरते रहे, छटपटाते रहे, नाले में पड़े रहे, फिर दूसरे दिन आये। तो वे गौड़ेश्वर संप्रदाय के जो महात्मा थे उन्होंने हमको दो श्लोक लिखकर दिये; आपको उसका भाव सुनाता हूँ- अलं विषयवार्तया नरककोटिवीभत्सया- बस-बस, अब विषयों की चर्चा मत करो; यह तो करोड़-करोड़ नरक से भी गन्दी चीज है। बोले- अच्छा चलो, श्रुति पढ़ें। तो कहा- वृथा श्रुतिकथाश्रमः वह तो बहुत मेहनत का काम है महाराज और वह हमारे लिए व्यर्थ है क्योंकि कैवल्यमोक्ष उसका प्रयोजन है और वह हमें चाहिए नहीं, हमको तो अकेलेपन से डर लगता है। ये तो शुकदेव, वामदेव आदि विरक्तों का काम है। तब तुमको क्या चाहिए? बोले-परं तु मम राधिकापदे रसे मनो रज्जत । हमको तो यह चाहिए कि श्रीराधारानी के चरणारविन्द के मकरन्द-रस में हमारा मन डूब जाय। एक श्लोक तो यही था। पर इससे भी विलक्षण एक दूसरा था। आप वेदान्त में सुनते ही होंगे कि वेदान्ती लोग आत्मचिन्तन करते हैं, आत्मानं चिन्तयामि। पर भक्तलोग क्या चिन्तन करते हैं? दूसरे श्लोक में था-
किशोरीमात्मानं किमपि सुकुमारी न कलये । हम अपने को सुकुमारी किशोरी के रूप में चिन्तन करते हैं। यह बात आपको क्यों सुनायी कि संसार के जो विषय हैं तो गंदी चीज हैं, इनका तो ध्यान ही नहीं करना है। और अपने को सुकुमारी, किशोरी के रूप में, ठाकुरजी के सामने उपस्थित कर लो। ठाकुरजी का प्रेम बड़ा विलक्षण है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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