विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रथम रासक्रीड़ा का उपक्रमऐसे हँसाओ। माने हास्यरस का आलम्बन स्वयं अपने को बनाकर जब हँसाओगे तब वह निर्देष हास्यरस होगा और जहाँ दूसरे की हँसी उड़ाओगे, वहाँ वह हास्यरस आगे चलकर झगड़े का कारण भी बन जायेगा। हँसी उड़ाओ तो सबसे पहले अपनी उड़ाओ, हजार बातें अपने में ही हँसने की है और दूसरे की हँसी उड़ाने में झगड़ा होने का डर रहता है। झगड़े की जड़ हाँसी, ज्वर की जड़ खाँसी। तो भगवान ने गोपियों की हँसी नहीं उड़ायी अपनी हँसी उड़ायी कहा- देखो, मैं तुम लोगों के चक्कर में पड़ गया बाबा! हमारी असंगता गयी, हमारा ब्रह्मचर्य, हमारा वैराग्य गया, कला की साधना, जो बाँसुरी बजा रहा था एकान्त में खड़े होकर, वह अलग गयी, तुम लोग तो बाबा छा गयी हमारे ऊपर, बस, अब तुम्हीं तुम हो गोपियों! प्रहस्य सदयं गोपीरात्मारामोऽप्यरीरमत् । बोले- भला भगवान ने ऐसा क्यों किया? अपने को ही उपहास का पात्र बना दिया? स्वयं भगवान, सारी सृष्टि का निर्माता और स्थापयिता, संहर्ता, कर्ता, हर्ता, धर्ता, भगवान। तो कहते हैं- ‘सदयं’ ! गोपियों की दशा देखकर उनके हृदय में दया आ गयी इसलिए उन्होंने ऐसा किया।
संस्कृत के जो पंडित लोग हैं वे ‘सदयं’ शब्द को एक दूसरी तरह से भी बनाते हैं- सदयं-सद्+अयम्; अयः स्वभावगो विधिः यत्र माने अब रासलीला का प्रारंभ करने के लिए उन्होंने हँसी से मंगलाचरण किया- अब रास-रस के वर्णन का प्रथम चरण प्रारम्भ हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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