विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रथम रासक्रीड़ा का उपक्रम‘विक्लवितं’ का अर्थ है- गुस्सा है, हमने क्रोध किया तुम्हारे ऊपर। गोपियों के अंदर दीनता भी आ गयी थी, दैन्य भी आ गया था, और प्रेम की परवशता भी आ गयी थी। लिखा है कि कम से कम तीन करोड़ गोपियों की संख्या थी। यह तीन करोड़ भी मैं बहुत थोड़ा करके कह रहा हूँ। वहाँ संख्या बहुत विलक्षण है वनिता शतकोटिभिराकुलितः शतकोटि हो गयी न! हमारे एक मित्र पूछने लगे कि श्रीकृष्ण ने इतने ब्याह क्यों कर लिए? इतनी गोपी क्यों रखा? कहा- अरे भोले भाई! यह तो बहुत कम लिखा है, थीं तो इससे बहुत ज्यादा यह तो गिनती है न, सौ करोड़ या तीन करोड़ नहीं, शतकोटिभिः का अर्थ है- शतकोटिश्च शतकोटिश्च शतकोटिश्च ताभिः शतकोटिभिः अब लो, इसका मतलब है कि संसार में जितने भी पदार्थ हैं और उन पदार्थों में जितनी भी अधिष्ठातृ देवी-देवता हैं- एक-एक गुलाब के फूल में एक-एक देवी, एक-एक मकान में एक वास्तुदेवी, एक-एक पत्ते में, एक-एक फल में, एक-एक वृक्ष में, एक-एक लता में, एक-एक पशु में, पक्षी में, मनुष्य में, एक-एक इंद्रियों में जितने देवी-देवता हैं इनका ईश्वर कौन है? वही महाभोक्ता है इन सबका वही भोग कर रहा है। यह आत्मदेव का जो वर्णन आता है- महाकर्ता, महाभोक्ता, महात्यागी, उसको लोग भूल जाते हैं। असंग करते-करते, विभु करते-करते, नित्य, शुद्ध-मुक्त करते-करते, ये भूल ही जाते हैं कि वही महाकर्ता, महाभोक्ता, महात्यागी भी हैं। संसार में जितनी भी वृत्ति-पशु में, पक्षी में, मनुष्य में, देवता में, दैत्य में जड़ में हुई हैं और होंगी वे सब परमेश्वर की भोग्या हैं, परमेश्वर की पत्नी हैं, परमेश्वर के अधीन है। उनको सोलह हजार लिखने का तो एक खास कारण होता है भला-शतं च एका च हृदयस्य नाड्यः उनकी गिनती तो ऐसे समझो कि- सोलह हजार उपासना के मंत्र हैं श्रुति में। उन सोलह हजार श्रुतियों को ही, सोलह हजार उपासना के मंत्र हैं श्रुति में। उन सोलह हजार श्रुतियों को ही, सोलह हजार पत्नी या सोलह हजार गोपी बता देते हैं क्योंकि वे परमात्मा का प्रतिपादन करती हैं और उनका परमतात्पर्य परमात्मा में है। असल में, गिनती नहीं है, जितनी स्त्री हैं, सब परमेश्वर की हैं। पुरुष तो कोई है ही नहीं उपासना में पुरुष भी स्त्री ही हैं। तो बोले कि इतने लोगों की बात श्रीकृष्ण ने कैसे सुनी? अरे महाराज। दस स्त्री आपस में बात करने लगें तो उनकी बात सुनना मुश्किल हो जायेगा फिर अनगिनत गोपियों की इतनी बातें श्रीकृष्ण ने कैसे सुनीं, कैसे समझीं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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