विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों की चाहततुम भगवद्भक्ति, प्रकट करने के लिए आये हो न, तो जब लोग सुनेंगे कि गोपियों ने सब कुछ छोड़कर- अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष, सब छोड़कर- श्रीकृष्ण से प्रेम किया और अंत में बेचारी उपेक्षित होकर तड़फड़ाकर उनके चरणों में बिना पानी की मछली की तरह मर गयीं तो यही मर्यादा तो स्थापित होगी कि जो श्रीकृष्ण से प्रेम करे सो मर जाय। तो कोई प्रेम करेगा दुनिया में? भक्ति का मार्ग चलेगा? भक्ति के मार्ग का लोप हो जायेगा यदि तुम पुष्टि नहीं करोगे। यह तो जैसे बिरवा को, कोमल पौधे को, सिंचाई की जरूरत होती है, इसी का नाम पुष्टि हैं; सूखते हुए पौधों को सींचना, इसका नाम पुष्टि है। सींचे हुए पौधे में खाद डाल देना, इसका नाम पुष्टि है। साधन रहित, निस्साधन जो जीव है, उस जीव को साधन का फल दे देना इसका नाम पुष्टि है। भगवान बोले- अच्छा गोपियों! तुम बोलो हम करें क्या? बोलीं- गोपियाँ जो बड़ी समझदार थीं, उन्होंने कहा कि देखो सखि! क्या श्रीकृष्ण सचमुच हमलोगों की उपेक्षा करते हैं कि बाहर से बनावट करते हैं? बोलीं- सखि, पता कैसे चले? तो कहा- पता ऐसे चले कि तुम अपने शरीर पर उनका हाथ रखने को कहो और ऐसी जगह हाथ रखने को कहो कि इनको लालच आ जाय; तब पता चल जायेगा कि इनके मन में बनावट है कि असलियत है। बोलीं कि देखेंगी कि इनके शरीर में रोमाञ्च होता है कि नहीं, इनके होठों में मुसकराहट आती है कि नहीं, पकड़े जायेंगे। दूसरी गोपी जो नहीं समझती है, वह कहती हैं- पहले तो नारायण। हमको निर्भय करो; हमें दो चीज चाहिए; एक तो चाहिए निर्भयता और एक चाहिए रसदान। पहले तो जो गरम हवा लगती है उससे बचाव हृदय का भाव प्रकट करती हैं, बिल्कुल खुले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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