विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास के हेतु, स्वरूप और कालहमें कल किसी ने बताया कि कुछ महाशय ऐसे होते हैं जो कहते हैं कि यह भगवान शब्द अच्छा नहीं है। भगवान नाम से ही वे चिढ़ते हैं। तो उसी समय हमको ध्यान में आया कि ऋग्वेद में तो भगवान शब्द का कितनी बार प्रयोग है और बड़े प्रशस्त अर्थ में, और उपनिषदों में भगवान, ‘भगवन’ इस शब्द का प्रयोग है। तो यहाँ ‘भगवानप’ का अर्थ यही कर लो कि बड़े ऐश्वर्यशाली हैं, धर्मात्मा भी हैं, यशस्वी हैं। अब भक्त जो होगा उसका काम तो यह है कि इष्टदेव यदि धर्मात्मा के रूप में विख्यात हैं तो उनका और धर्म बढ़े; उनका बड़ा यह है तो कोई कलंक न लगने पावें; यह वैराग्यवान् है तो उनका वैराग्य और प्रज्ज्वलित होवे; बड़े सुन्दर हैं तो उनका सौन्दर्य और बढ़े। यह भक्त का काम हुआ। लेकिन महाराज! भगवान इसकी परवाह नहीं करते। ‘भगवानपि’, ‘भगवानपि वीक्ष्य रन्तुं मन्श्चक्रे’। भक्त को तो यह चाहिए कि वह भगवान का यश बढ़ावें, भगवान का धर्म बढ़ावें, भगवान का वैराग्य बढ़ावें, और बढ़ा-बढ़ाकर, सोच-सोचकर खुश हों; परंतु भगवान को जब भक्तों के बीच में कूद-कूदकर आना पड़ता है तो वे अपने ऐश्वर्य को नहीं संभालते। कहा- भले लोग हमको ऐश्वर्यशाली न समझें, हमको गरीब ही समझें; हमको यशस्वी न समझें, कलंकी समझें; हमको धर्मात्मा न समझें, अधर्मी समझें, हमको सुन्दर न समझें, कुरूप समझे; लेकिन हम अपने प्रेमी को भला कैसे छोड़ सकते हैं भाई। यह भगवद्- धर्म है। तो ‘भगवानपि’ भगवान होने पर भी, इतने बड़े ऐश्वर्यशाली होने पर भी, जब देखा कि हमारा प्रेमी हमारे लिए तड़प रहा है, हमसे मिलने के लिए व्याकुल हो रहा है, तो अपने समग्र ऐश्वर्य की, समग्र धर्म की, समग्र ज्ञान की, समग्र वैराग्य की, समग्र यश की, श्रीकी उपेक्षा करके ‘वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे’ हमको देखा तो कूद पड़े। यह ‘भगवान’ शब्द का अर्थ ‘ऐश्वर्यशाली’ लेकर ‘भगवान’ का अर्थ हुआ है। और ‘भगवानपि’ का अर्थ कल बताया था कि गोपियों के मन में जो विहार का संकल्प था ही, अब भगवान ने भी किया है। यह भी बताया था कि काम के मन में दो-दो हाथ आजमाने की थी ही, अब भगवान ने भी संकल्प किया। ‘अपि’ शब्द का अर्थ संस्कृत में होता है ‘भी’। अब एक भाव और देखो- हँसी की बात है। हँसी की भी बात मैं कह रहा हूँ- ‘भगवानपिता रात्रीः’ है न- ‘कथं भूतो भगवान’, कहा- ‘अपिता’। बाप ही नहीं है उनके! अगर कोई बाप वाला बालक होता तो उसको डर लगता कि हम कोई गड़बड़ करेंगे तो हमारा बाप डाँटेगा। पूछेगा- रात में कहाँ गये थे? कि नाच रहे थे? तो वह तो डाँटेगा, नियंत्रण करेगा। और ये कैसे हैं कि ‘अपिता’- इनके तो बाप ही नहीं। ‘भगवानपिता’- ‘अपिता’ का अर्थ स्वतंत्र है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रवचन संख्या | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज