विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों में दास्य का हेतु-1गोपियों को कुण्डलों से भी सौतियाडाह होता था कि ये हर समय श्रीकृष्ण के कान ही भरते रहते हैं। श्रीमद्भागवत में बताया है कि साङ्ख्य और योग भगवान के मकराकृत कुण्डल हैं; तो मानो ये साङ्ख्य और योग कृष्ण के कान में सिफारिश करते रहते हैं कि अमुक भक्त स्वीकार करने योग्य है या नहीं। अर्थात् कोई विवेकी है या योगी है तो स्वीकार करो, वरना नहीं। भगवान को भी यह बात अच्छी नहीं लगी। सो महाराज, भगवान ने दोनों को, साङ्ख्य और योग को, ऐसा मरोड़ा कि उनको मकराकृति कर दिया। मकराकृति माने मत्स्याकृति-मछली जैसी शक्ल की। यह मछली क्या है, आप जानते हैं? बंगाली लोग तो इसे बहुत प्यार करते हैं। यह काम की ध्वजा है। जो नारायण के कुण्डल हैं, जो ईश्वर या भूमापुरुष के कुण्डल हैं, वे तो साङ्ख्य और योग की सिफारिश करते हैं, परंतु श्रीकृष्ण भगवान के कान में जो कुण्डल हैं वे मकराकृति हैं इसलिए वे तो काम के सिफारिशी हैं। माने कृष्ण के प्रति जिसके हृदय में काम है, उसकी सिफारिश ये श्रीकृष्ण से करते हैं कि यह तुमको चाहने वाला प्रेमी है, तुम्हारे प्रति कामवाला है, इसको तुम स्वीकार करो। बिहारी का एक दोहा है-
गोपाल के कुण्डल जो हैं मकराकृति हैं और कान में शोभायमान हैं। मानो सारी दुनिया को जीतकर काम आया और आकर कृष्ण में प्रविष्ट हो गया, और उसकी विजय वैजयन्ती जो मकराकृति है वह श्रीकृष्ण के कानों के पास फहरा रही है। जैसे बालों को सारूप्य मुक्ति मिली है वैसे कानों के कुण्डलों को सामीप्य मुक्ति मिली है, परंतु वे सामीप्यमुक्ति नहीं चाहते हैं। क्या चाहते हैं?- कुण्डलश्रीगण्डस्थलं- कुण्डलों की जो गण्डस्थली है, कुण्डलों की जो शोभा है, वह आकर भगवान के कपोलों पर चमकती रहती है, नाचती रहती है। भगवान का जो मुखारविन्द है, कपोल हैं, वह एक सरोवर के समान हैं और उनको नीला रंग मानो उस सरोवर में नीला जल है। उस नील सरोवर में उनकी आँखों की दो मछली तो ऊपर नाचती रहती हैं और ये मकराकृति कुण्डल की जो दो मछली हैं कपोलों पर आकर उनकी जो परछाईं पड़ती है, वह नाचती रहती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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