विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रेम में सूखी जा रहीं गोपियाँ आखिर बोलींब्रह्मवैवर्त में राधारानी ने श्राप दे दिया है श्रीकृष्ण को! वह बड़े प्रेम की कथा है। कई लोग तो उस पर बड़ा आक्षेप करते हैं कि क्या राधारानी हैं जो श्रीकृष्ण को श्राप दे देती हैं। पर बात तो यह है कि यह जो अपना प्रियतम है उसके ऊपर प्रेम करना का जैसा अधिकार है वैसे उसके ऊपर क्रोध करने का भी अधिकार है। हाथ जोड़ने में भी प्रेम है और क्रोध करने में भी प्रेम है, परन्तु बोलने से पहले वे मौन हो गयीं- तूष्णीम्। तूष्णीम्- यह मौन जो है वह सन्धि है। गोपियाँ तो वेग से दौड़ी आयीं कृष्ण के पास, और कृष्ण ने डाली रुकावट, और दोनों के सन्धिस्थल पर है मौन। इस मौन के बाद गोपियाँ अगर कमज़ोर हैं तो घर लौट जायँ, जैसी यज्ञपत्नियों की दशा हुई थी वह हो जाय, और कमज़ोर न हों तो कृष्ण के मना करने पर भी, पहाड़ बीच रास्ते में आ जाने पर भी आगे बढ़ जायँ। गोपियों का प्रेम ऐसा है कि इसमें लौटाना नहीं है। श्रीकृष्ण भी कौन उनको लौटाना चाहते थे, वे तो स्थूणाखनन-न्याय से उनके प्रेम को मजबूत करन चाहते थे। वह प्रेम ही क्या, जिसमें लौटाना हो।
अपना जो हृदयेश्वर है, परम प्रियतम है, प्रेष्ठ है। जैसे श्रेयाम् को श्रेष्ठ बोलते हैं, ज्यायाम् को ज्येष्ठ बोलते हैं। उसी प्रकार प्रेयाम् को प्रेष्ठ बोलते हैं और ये तो प्राण-प्रियतम् हैं। इनके लिए हृदय द्रवित हो गया, जो संसार की पकड़ की कठोरता थी वह मिट गयी। परंतु वह आज बाण ऐसी बोल रहा है, जैसे कोई प्रियेतर बोल रहा हो। अपने प्यारे के सिवाय और कोई बोल रहा हो। बोली है दूसरे की, और बोल रहे हैं कृष्ण! यहाँ ‘इव’ जोड़ने का अभिप्राय है कि वास्तव में कृष्ण प्रियेतर नहीं है, प्रियेतर लगते हैं। श्रीशुकदेवजी महाराज गवाही दे रहे हैं कृष्ण की ओर से, ‘प्रियेतरमिव प्रतिभाषमाणं’- कि यह गोपियों की कम अक्ली है जो प्रिय को प्रियेतर समझती हैं। श्रीकृष्ण का ऐसा जादू है कि वह प्यार जताना चाहें तो प्यार जता दें, मार जताना चाहें तो मार जता दें; धर्म ही धर्म, धरम ही धर्म की बात करते हैं कि लौट जाओ, अरे लौट जाओ। गोपियाँ रो रही हैं, आँसू की धारा बह रही हैं, धरती में धँसी जा रही हैं, मुँह लटका जा रहा है और बोलते हैं- गोपियोँ! चिन्ता छोड़ो, रोओ मत, स्वस्थ हो जाओ, अगर रास्ता भूल गयी हों तो चलो, हम पहुँचा दें, तुमको धर्म के विरुद्ध कोई काम नहीं करना चाहिए! यह यदि हमारा प्यारा है जिसके लिए हम सब छोड़कर आयी हैं तो यह तो दुश्मन बन रहा है ऐसा बोलता है- ‘प्रियेतरमिव प्रतिभाषमाणं’ ‘कृष्णं तदर्थविनिवर्तितसर्वकामाः’ पर बोलता कौन है? जिसने आकर्षण किया है, जिसने खींचा है, वही कृष्ण बोलता है। जैसे लोहे के लिए चुम्बक होता है वैसे गोपियों के लिए हैं श्रीकृष्ण। परंतु कृष्ण सबको नहीं खींचते हैं। किसको खींचते हैं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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