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रासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
‘लौट-जाओ’ सुनकर गोपियों की दशा का वर्णन
गोपियों के मन में इस समय क्या है? बोले- दुःख का अनुभव प्रकट हो रहा है। कैसे?– ‘चरणेन भुवं लिखन्त्यः’ वे अपने पाँवों से धरती खोद रही हैं मानो कहती हैं कि धरती! तू फट जा! तेरे अंदर समा जायँ। यदि कृष्ण ने हमें स्वीकार नहीं किया तो धरती पर हम रहकर क्या करेंगी?-
‘चरणेन भुवं लिखन्त्यः’ चरण से चिह्न बना रही हैं। बोली- हे कृष्ण। हम तो मर जावेंगी, लेकिन कल जब लोग आवेंगे तो जो हम पाँव से धरती पर लिख रहे हं इसको देखेंगे- ‘लिखित्वा साक्षते’ फिर यह सुनहले अक्षरों में लिखा जावेगा कि श्रीकृष्ण की प्रेमिका गोपियाँ श्रीकृष्ण के विरह में व्याकुल हो कर मर गयीं। इतिहास की सामग्री हो जावेगी और बड़ी बदनामी होगी तुम्हारी?
ये तो भाई देखो श्रीकृष्ण और गोपी एक दूसरे से मिले हुए हैं। ये तो मिलीभगत है उनकी। ये कहें कि लौट जाओ वह भी मिलीभगत है और इनका रोना-धोना जो है वह भी मिली-भगत है। कहते हैं कि – ‘हम तुम एक कुञ्ज के सखा रूठे नाहि है बनत।’ हम- तुम तो एक कुञ्ज के सखा हैं, रूठने से नहीं बनता है। ये जो करते हैं, लीला करते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि संसार में जो दूसरे लोग होंगे उनके हृदय में भी वियोग का भाव उदय हो, श्रीकृष्ण के प्रति रसमयी वृत्ति का उदय हो, भक्ति ऐसी करनी चाहिए लोग यह बात समझें। इसलिए गोपियों की कृष्ण की मिली भगत हैं, यह संयोग-वियोग की लीला।
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