विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती‘लौट-जाओ’ सुनकर गोपियों की दशा का वर्णनकैसे? जैसे अगर छाया का सुख लेना हो तो धूप में चलना पड़ता है, वैसे जिसको पहले भगवान् के वियोग में दुःख होगा उसी को भगवान् के संयोग में सुख की उपलब्धि होगी। नहीं तो उपलब्धि में दुःख और सुख, दोनों समान ही हैं। दुःखात्मक उपलब्धि भी वही है, और सुखात्मक उपलब्धि भी वही है। उपलब्धि वही है। नारायण! सुख की उपलब्धि करनी हो तो पहले दुःख की उपलब्धि करो। यदि कभी-कभी मिलते हैं तो बड़े प्रेम से मिलते हैं और रोज-रोज मिलें तो लड़ते हैं। लड़कर पति-पत्नी अलग-अलग हो जाते हैं और फिर पंद्रह दिन, बीस दिन, एक महीने के बाद अगर मिलते हैं तो बड़े प्रेम से मिलते हैं। यही प्रेम बढ़ाने का तरीका है।श्रीकृष्ण ने कहा कि गोपियों को अधिक से अधिक सुख मिले इसका क्या उपाय है? कि बोले बाबा, अब थोड़ी गर्मा-गर्मी होनी चाहिए। इसलिए गोपियों से कह दिया कि लौट जाओ। विषण्णा- गोपियों में विषाद आ गया। क्यों आ गया? क्योंकि यह प्रसाद बाप है। जैसे गीता के दूसरे अध्याय में वर्णित सांख्ययोग का बाप था पहले अध्याय का अर्जुन का विषाद, वैसे ही रासपञ्चाध्यायी के पहले पकरण में गोपियों का विषाद है। विषाद के बाद प्रसाद है और विषाद ही न हो तो प्रसाद कहाँ से आवे? ‘विषण्णा भग्नसंकल्पाः’ गोपियों का संकल्प टूट गया, उनके दिल में तो था कि चाँदनी रात है, यमुना का विशाल पुलिन है, वहाँ हरे-भरे वृक्ष फूले हुए फल लगे हुए, मोर नाचते रहे, कोयल कुहुक-कुहुक कर रही- ऐसे वातावरण में हम कृष्ण से रूठेंगी और कृष्ण हमको मनायेंगे कि प्रसन्न हो जाओ। यह जो उन्होंने अपने दिमाग में एक झाँकी बनायी थी, उसकी जगह पर कृष्ण ने एक खँडहर खड़ा कर दिया। भग्न संकल्पा जैसे भग्न मंदिर होते हैं, भग्न महल होते हैं वैसे गोपियों के संकल्प का महल भग्न हो गया। यह क्यों हुआ, इसमें भी एक रहस्य है। काम के बाप का नाम आप लोगों को मालूम है? काम के बाप का नाम है संकल्प। महाभारत में एक मंकी गीता है। वहाँ महात्मा ललकारता है-
अरे ओ काम। मैं तेरी जड़ जानता हूँ। क्या? संकल्पादिक जायसे, तुम संकल्प से पैदा होते हो। जब किसी के बारे में समत्व की कल्पना होती है कि यह बड़ा बढ़िया है, यह बड़ा मीठा है, यह बड़ा सुन्दर है, तब तुम इस संकल्प से पैदा होते हो। मैं कभी तेरा संकल्प ही नहीं करूँगा। तो फिर तू मेरे साथ कहाँ से आवेगा? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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