विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास की भूमिका एवं रास का संकल्प-भगवानपि०यदि कहो कि ब्रह्म बड़ा कि व्रज बड़ा? तो व्रज बड़ा। देखो, अब रासलीला में प्रवेश कर रहे हैं। विष्णु पुराण में और हरिवंश में दोनों में एक श्लोक आता है। हमारी दृष्टि तो उन पर बाद में पड़ी पहले तो जयदेव गीत गोविन्द में वह पद पढ़ा था। जयदेव जी एक श्लोक लिखते हैं-
भगवान व्रज के निकुञ्जों में विहार करके अपने कैशोर को सफल करते हैं। एक तो भगवान, दूसरी किशोर-अवस्था और तीसरी किशोर अवस्था की सफलता। भगवान तो सफल हुए तब जब वे व्रज में कृष्ण के रूप में प्रकट हुए और कृष्ण का रूप सफल हुआ तब जब किशोर के रूप में प्रकट हुए- ‘धर्मी किशोरे वात्न’- व्रज में जो शिशु रूप है, जो कुमार रूप है वह दर्म है औरजो किशोर रूप है वह धर्मी है। माने मूलरूप भगवान का किशोर है। माँ को संतुष्ट करने के लिए शिशु बनते हैं और ग्वालों को संतुष्ट करने के लिए सखा बनते हैं। ग्वाल जैसे प्रसन्न होवें तो सखा बनकर खेलते हैं, मैया जैसे प्रसन्न हो तो शिशु बनकर दूध पीते हैं। पर मूल में जब ग्वाल-बाल सो जाते हैं और मैया जब सोती है तो अपना हमेशा का जो रूप है- किशोर रूप वह ग्रहण करके नित्य निकुञ्ज में क्रीड़ा करते हैं। तो किशोररूप धर्मी हैं और शिशुरूप और कुमाररूप धर्म हैं। असल में भगवान किस उमर में रहते है? बोले- दस, पंद्रह, सोलह बरस की उमर। कुछ – कुछ रेखा बलों की रेखा उठनी शुरू ही हुई है। एक पद है बहुत बढ़िया- ‘कछुक उठत मुख रेखै’- रेख उठ रही हैं। यह जो रूप है श्रीकृष्ण का वही मूलरूप है और यही कृष्ण है जो अवतार लेते हैं। ये कृष्ण पहले सत्ता सामान्य ब्रह्म के रूप में अवतार लेते हैं? देखो, यह वैष्णवों की बात सुनाता हूँ। सत्ता-सामान्य ब्रह्म के रूप में ये कृष्ण प्रकट होते हैं। उनकी ज्योति जो है, वह है उनका नियन्ता अन्तर्यामी रूप। उसके बाद वही उनका मत्स्य बनते हैं, कभी कच्छप बनते हैं, कभी नृसिंह बनत हैं। लेकिन उनका वास्तविक रूप जो है वह कृष्णरूप है जो व्रज में प्रकट होता है परिपूर्णतः रूप में। उसमें भी जो किशोररूप है वह गोपियों के बीच में ही प्रकट होता है अन्य किसी के सामने नहीं और वही असली रूप है भगवान का। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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