विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीविकारयुक्त प्रेम से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव हैअरे बाबा! जब आ गया वह, तो उसके साथ जुड़ो, यह मत देखो कि कैसे जुड़ते हैं? किसी बहाने से जुड़ जाओ। बोले- ए! गोपी कहाँ जा रही है? बोली- तुमसे मतलब? हम तो जमुना जल भरने जा रहे हैं। इधर कैसे रास्ता भूल गयी? राह भूल गयी इसीलिए निकल आयी। है न, नारायण! यह बताने की जरूरत कैसे भी हो। पूछा- अब क्यों लौट आयी? हमारी माला खो गयी, मोती की माला कहीं तुमने चुरायी तो नहीं? लो, आयी मिलने, और चोर बना दिया। फिर आ तो गयी न। कामं क्रोधं, अरे महाराज कोई कामवश आया, पर आया कृष्ण के पास। वह महाराज, गाली देती हुई जटिला-कुटिला पहुँची। अरे, जो नन्द के छोरे। तू धर्म बिगाड़ने के लिए आया है हमारे गाँव में? अब महाराज पहुँची, तो देखकर कृष्ण बोले- आओ सासुजी! वैसे तो सब ठीक है न! यह आज इतना काजल आँख में के लगा लिये। और इतनी चमकती चम-चम क्यों आ रही हो? बोली- क्या तू समझता है कि मैं बुढ़िया हो गयी। अरे, नहीं, सासुजी। अभी तो तुम्हारी जवानी भर रही है? नारायण! वह भौहों तक काजल लगाकर वर्णन किया महात्मा लोगों ने, बड़े-बड़े महात्माओं ने जिनके जीवन में कोई संग्रह नहीं, परिग्रह नहीं, जिनके मन में कोई सांसारिक विषयसक्ति नहीं, उन्होंने वर्णन किया है- तुम्बी-लम्बि कुचासि, दर्दुरवधूवन्नासाग्नि के। कृष्ण ने कहा कि सासुजी तुम्हारी नाक कैसी? कि मेंढक जैसी। तुम्हारा वक्षःस्थल कैसा? कि तुम्बा जैसा ऐसे विरक्तों ने वर्णन किया। यह काजल कैसे तुम्हारे सासुजी! आज नाचती हुई क्यों चल रही हो। कृष्ण समझ गये कि ये अपनी बहू के लिए नहीं आयी है, अपनी बेटी के लिए नहीं आयी है, ये तो हमको देखने के लिए आयी है। बहाना बना रही है। कामं क्रोधं भयं स्नेहं- कोई डर से जाते हैं कि देखो, कृष्ण इस रास्ते न आना! कोई वात्सल्य करते हैं। ऐसा वर्णन आया है कि कृष्ण ने गोपी का आँचल पकड़ा तो गोपी ने कहा- मुञ्चाश्चलं चञ्चल पश्य लोकं- अरे चञ्चल छोड़ दे आँचल! देख-देख, लोग कैसे देख रहे हैं। बालोसि नालोकयसे कलंकम् । अभी तू बालक है, तुम्हें तो मालूम नहीं कि कलंक लग जाएगा। कृष्ण हट गये और छोड़ दिया आँचल। पर जब छोड़ दिया तब? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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