विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीविकारयुक्त प्रेम से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव हैअब जो चार विशेषण हैं भगवान् के-अव्ययस्याप्रमेयस्य निर्गुणस्य गुणात्मनः । किसी के घर में गेहूँ है, चावल है और खाने का मन है। तो गेहूँ, चावल चबाकर ईश्वर को बुलालें कि हमारे कर्म से प्रसन्न होकर तुम आ जाओ और वह प्रसन्न होकर आ जाये, यह बात दूसरी है। तुम दृष्टान्त दे दो, कि भाई, अमुक के होता है तब तो हम ईश्वर को गुणों से छान लेते- गुणों को अलग कर देते कि हट जा, अब हमारा परमात्मा रहेगा। अरे, वह तो गुणों से न्यारा नहीं। यह नहीं कि साँप को भगावेंगे तब रस्सी के रूप में परमात्मा मिलेगा, जिसको तुम सर्प समझ रहे हो वही तो है। तब कैसे मिलेगा? देखो, यदि वह रस्सी की तरह जड़ होता, बुद्धिहीन होता, मूर्ख होता तब तो हम जाकर उसको पकड़ लेते। अरे वह तो बड़ा समझदार है। सब ज्ञानों का खजाना है जब तक वह स्वयं आविर्भाव को प्राप्त न होवे तब तक लोग उससे कैसे मिलें। वह स्वयं आता है मिलने के लिए, भला। उस तक पहुँच नहीं होती है भले चाहे सब गुणों में देखो कि वह भरा हुआ है। चाहे भले देखो कि नेति-नेति से निषेध कर देने पर वही रहता है। चाहे यह कहो कि सब प्रमाणों का विषय वही है, चाहे कहो कि सब वही है, लेकिन महाराज वह स्वयं-प्रकाश सर्वावभासक, जब स्वयं प्रकट होता है तब लोगों का कल्याण होता है। आज वह कृष्ण के रूप में आया है। अब यह शर्त मत लगाओ का उसको हम कर्म के द्वारा जानेंगे, प्रमाण के द्वारा जानेंगे, गुणों को नेति-नेति करके जानेंगे, सर्वरूप में जानेंगे सर्वरूप में जानने से कृष्ण नहीं मिलेगा, नेति-नेति से निषेध करने से कृष्ण नहीं मिलेगा। प्रमाण के विषय रूप से कृष्ण नहीं मिलेगा और कृति-साध्य रूप से नहीं मिलेगा। ये चारों बातें, सुबोधनीजी में हैं। तब कैसे मिले? नृणां निःश्रेयसार्थाय।कृपयति यदि राधा बाधिताशेषबाधा वह स्वयं कृपा करके आया है। यह प्रकट हुआ है और अपने साथ ये जो आचारहीन हैं, जातिहीन हैं, ज्ञानहीन हैं, भक्तिहीन हैं, उनको भी अपने साथ लेकर प्रकट हुआ है, उनको नचाने के लिए आया है, उनको भी मिलने के लिए आया है। उसे भाव से पकड़ो या कुभाव से, उसे पकड़ने में ही कल्याण है। अच्छा, अब कहो भाई, एक आदमी गया गंगा-स्नान करने, बोले भाव होगा तब न गंगा-स्नान का फल मिलेगा? बोले-भाई तुमने तो जिसके लिए गंगाजी का अवतार हुआ था उसी को व्यर्थ कर दिया। बोले- ब्राह्मण की पूजा कब करो कि जब संपूर्ण वेदों का पूर्ण विद्वान हो? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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