विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजार-बुद्धि से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव हैअपने प्रियतम के संबंध में ऐसी धारणा होना कि दुनिया में उसको कोई पूछने वाला न हो- जब खिलावें तो हम खिलावें, जब पिलावें तो हम पिलावें, हमारे बिना भूखे रहें और प्यास रहें- ऐसी संकीर्ण दृष्टि ईश्वर में नहीं जाती है। तो गोपियाँ देखती हैं कि परमा राधा के आत्मा हैं, परम प्रेष्ठ हैं; बोलीं- वाह-वाह, हमको तो प्रेम का मार्ग मिल गया। जैसे इनसे राधारानी प्रेम करती हैं वैसे हम भी प्रेम करेंगे। परमः आत्मा परमात्मा, परमः अंतः करणादि संबंधवर्जितः आत्मा-परमात्मा परम माने अंतःकरणादि के संबंध से रहित जो आत्मा है उसको परमात्मा बोलते हैं। ‘प्रीञ् पालनपोषणयोः’ से पिपर्ति इति परमाः- जो सबका पालन-पोषण करें, सबको पुष्टि दें, उसको परमात्मा बोलते हैं। कोई कैसे गया उसके पास वह परमात्म-वस्तु सत्य यह नहीं देखता कि यह किस बुद्धि से उसके पास आया है। इसलिए जार-बुद्धि से भी गोपी जब कृष्ण के पास गयी तो कृष्णरूप हो गयी मानो बन्धनयुक्त हो गयी। उसका गुणमय शरीर छूट गया और बन्धनमुक्त हो गयी। जारबुद्ध्याऽपि संगताः- पञ्चदशी में इसका बड़ा सुन्दर वर्णन आया है। पञ्चदशी में एक प्रकरण है ‘ध्यानदीप’। जैसे- संस्कृत में व्याकरण शब्द का अर्थ होता है वैसे वे ही वेदान्त में प्रकरण शब्द का अर्थ होता है। प्रक्रिया बताने वाले ग्रंथभाग को प्रकरण कहते हैं- प्रक्रियते अनेन। तो ध्यानदीप में ऐसे बताया कि दो आदमी थे, दोनों ने देखा कि दूर से चमक आ रही है, कोई चीज झिलमिल-झिलमिल झलक रही है। दोनों को शंका हुई कि वहाँ कोई चीज झिलमिल-झिलमिल झलक रही है। दोनों को शंका हुई कि वहाँ कोई हीरा पड़ा हुआ है, निश्चय हो गया कि वहाँ कोई हीरा ही है। दोनों ने बँटवारा कर लिया कि उस हीरा को तुम ले लो और वह हीरा हम ले लें। दोनों के मन में हीरा-बुद्धि हो गयी लेकिन एक आदमी जब उस चमक के पास पहुँचा तो वहाँ दीया जल रहा था। उस दीपक की प्रभा में उसको हीरा की भ्रान्ति हो गयी थी। वहाँ हीरा नहीं मिला। दूसरा भी चमक ही देख रहा था और चमक देखकर गया लेकिन वहाँ तो दर-असल हीरा था। दोनों को चमक देखकर हीरा की पहले भ्रान्ति ही हुई थी परंतु एक पहुँच गया हीरे के पास और एक पहुँच गया दीपक के पास। वहाँ चमक में हीरे की भ्रान्ति होना एक के लिए लाभकारक हो गया और एक के लिए लाभकारक नहीं हुआ। जिसको हीरा मिला उसके भ्रम को वहाँ संवादी भ्रम बताया है; दूसरे को विसंवादी भ्रम के रूप में बताया गया है। वहाँ बात यह बतायी कि एक बिना जाने यह ध्यान करे कि आत्मा ब्रह्म है और एक जानकर ध्यान करे तो बोले- अनजान में भी कोई ध्यान करेगा कि आत्मा ब्रह्म है तो उसको भी वही अनुभव होगा जो जानकर ध्यान करने वाले को होगी क्योंकि यह तो सत्य ही है कि आत्मा ब्रह्म है। जब ध्यान करने से झूठी चीज भी मिल जाती है तब सच्ची चीज को तो बात ही क्या है। ध्यान में बड़ा बल है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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