विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसिह तैसेहि उठ धायीं-2त्रिवक्र भगवान टेढ़े क्यों हैं? भगवान टेढ़े क्यों हैं कि प्रेम सीधा नहीं चलता। प्रेम की गति टेढ़ी है और कृष्ण प्रेम हैं। अतः टेढ़े हैं! अच्छा और देखो श्रृंगार का रंग साँवरा है; श्रीकृष्ण भी साँवरे हैं। और भक्त बिचारे सीधे हृदय के, सरल-सरल, उनमें से टेढ़े-टेढ़े घुस जाते हैं, तो अटक जाते हैं। सीधी में टेढ़ी चीज डाल दो तो अटक जाएगी, निकलेगी नहीं। भगवान भी यदि सीधे होते तो जल्दी से निकल जाते; इसलिए उन्होंने अपने को टेढ़ा बना दिया। अब गोपी के इस ध्यान का फल क्या हुआ नारायण, पहले तो ऐसा लगा कि श्रीकृष्ण से हमारा विरह है- दुःसहप्रेष्ठिविरह तीव्रतापधुताशुभाः । यह भगवान का जो विरह है वह सामान्यतः किसी को फुरता नहीं है; क्योंकि यदि स्फुरता हो तो उसका दुःख भी स्फुरित होगा और अगर विरह का दुःख होगा तो संसार से त्याग, वैराग्य करना नहीं पड़ेगा, अपने काम आप हो जाएगा। ये जो वेदान्ती लोग विवेक करते हैं- ‘अत्यन्तमलिनो देहो-देही चात्यन्तनिर्मलः।’ – देह बड़ा मलिन है और देही अत्यन्त निर्मल है; बिचारे विवेक भी करते हैं और फिर देह को ही मैं मानकर सब व्यवहार करते हैं लेकिन अगर भगवान से प्रेम हो जाए तो देह के बारे में सोचना नहीं पड़ेगा। चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि अगर हमसे कोई कहे कि तुम भगवान का समागम चाहते हो कि विरह? तो हम कहेंगे कि हमको विरह चाहिए। अरे भलेमानुस विरह क्यों माँगते हो? तो बोले- देखो समागम में तो प्रेमास्पद अकेला रहता है परंतु विरह में तो वह सब जगह दिखाई पड़ता है। वृत्ति तदाकार हो जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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