विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास में चंद्रमा का योगदानवनं च वृन्दावनं च- वन में तो वृन्दावन हो। अरे, वन तो सब जगह होते हैं- जूना गढ़ के पास ‘नीलगिरि’ वन है उसमें शेर रहते हैं और बंगाल की खाड़ी के पास सुन्दर वन है, उसमें हाथी रहते हैं। मगर वन तो वह है जहाँ राधा-कृष्ण विहार करें। तद्धैतद्वनं- केनोपनिषद् में ब्रह्मवन का वर्णन है। पूर्वमीमांसा में एक वनवाद है- वन एक होता है या कि वन अनेक होता है? वन वृक्षों से बनता है- वृक्षों के द्वारा आरब्ध है या कि वन वृक्षों का परिणाम है? कि वन वृक्षों का विकार है? जिसमें अनेक समाये हुए हों, उस एक को वन बोलते हैं। तो अनेक का मूल वहीं है। यह ब्रह्मवन क्या है? वन सम्भक्तौ- ‘वन्’ धातु सम्भजन के अर्थ में है। जिस स्थिति में रहकर मनुष्य भगवान का भजन कर सके उसको वन कहते हैं-भजन बिन बैल बिराने होइहौ । स्वामी शुकदेवानन्दजी महाराज बताते थे- कि हम बचपन में अपनी दुकान पर बैठे थे; हलवाई की दुकान थी। तो सामने से एक बैलगाड़ी वाला खूब लादकर गाड़ी निकला। दुकान के सामने सड़क के सामने सड़क जरा टूटी-फूटी थी; लेकर साँटी बैल को खूब मारे, बैल जो है घुटने के बल बैठ जाय। गाड़ी चले नहीं और वह बैल को मारे। उसी समय उनको यह पद याद आया कि भजन बन बैल गिराने होइहौ। अगर भजन नहीं करोगे तो इसी बैल की सी दशा होगी। बस उनके मन में वैराग्य आ गया। तो वन वही है जहाँ बैठकर भगवान का भजन किया जाय। अब वृन्दावन में तो राधा-कृष्ण, गोपी-कृष्ण रासलीला करने वाले हैं। इसलिए चंद्रमा ने अपनी कोमल किरणों से कोमलगोभिरञ्जितम्- सारे वन को रंग दिया। कहीं लाल चमके (कोपलें जहाँ थीं लाल-लाल, पत्ते लाल चमकें), कहीं हरा चमके, कहीं सुनहला चमके, कहीं फूल चमकें, कहीं फल चमकें। भगवान की दृष्टि पड़ी और चंद्रमा ने अपना सारा रस बरस दिया।वनं च तत्कोमलगोभिरञ्जतम् । अब कृष्ण ने कहा कि चंद्रमा तो बिलकुल रस बरसाने पर उतारू हो गया है, अब हमको भी कुछ बरसाना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रवचन संख्या | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज