भागवत धर्म मीमांसा6. ज्ञान-वैराग्य-भक्तिऐतिह्य यानि इतिहास अर्थात अनुभव। यहाँ इतिहास को प्रमाण माना है। इतिहास का अर्थ क्या है? साबरमती-आश्रम में एक बिल्कुल अनपढ़ बहन थीं। बापू ने उनसे कहा : ‘आप आश्रम की पाठशाला में शिक्षिका बनिये।’ वे कहने लगीं : ‘मैं क्या सिखाऊँगी?’ बापू ने कहा : ‘आप बूढ़ी हैं, ये सब बच्चे हैं, तो इन्हें इतिहास सिखाइये।’ वे हँसने लगीं और बोलीं : ‘मैं इतिहास तो जानती नहीं।’ बापू ने कहा : ‘बाबर कब जन्मा और कब मरा, इस जानकारी की इन बच्चों को कोई जरूरत नहीं। अपने अनुभव सुनाइये।’ अपनी पीढ़ी का इतिहास आज की पीढ़ी को सिखाना ही इतिहास सिखाना है। जो पुश्त-दरपुश्त चला आ रहा है, वही इतिहास है। इतिहास यानि अनुभव-ज्ञान।
यह सारा कहने में केवल भावना ही नहीं, प्रमाण भी बताया है। प्रमाण से सिद्ध किया कि जो चीज टिकती नहीं, उसके लिए हम क्यों लट्टू हों? हमारा घर बड़ौदा में था। मैं बच्चा था। एक बार शहर में एक जगह रोशनी थी। काफी लोग देखने के लिए जा रहे थे। पिताजी ने मुझे कहा : ‘तुम्हें भी जाना हो तो जाओ।’ मैंने उनसे पूछा : ‘आप नहीं जाएँगे?’ उन्होंने समझाया : ‘एक मिट्टी का दिया लिया, उसके पास दूसरा रखा, उसके पास तीसरा रखा। इसी तरह एक के बाद एक सैकडों बत्तियाँ लगायीं, उसमें देखने की क्या बात है?’ मुझे यह बात एकदम जँच गयी। आकाश में कौए उड़ते हैं। उनकी तरह-तरह की आकृतियाँ बनती हैं। हम कहते हैं : ‘कितना सुन्दर!’ वैसे देखा जाए तो वहाँ सुन्दर क्या है? आपने एक काल्पनिक लकीर बनाकर उस पर सुन्दरता का आरोपण कर दिया। कौओं से पूछें कि क्या तुमने यह आकृति बनायी? तो वे कहेंगे : ‘हम तो सिर्फ उड़ रहे थे।’ इसीलिए ज्ञानी – विकल्पात् विरज्यते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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