भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 24

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9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु

1. आशा हि परमं दुःखं नैराश्यं परमं सुखम्।
यथा संछिद्य कांताशां सुखं सुष्वाप पिंगला॥
अर्थः
आशा (यानी वासना) से अत्यंत दुःख होता है। नैराश्य (यानि वासना-त्याग ) से परम सुख मिलता है। प्रियकर के मिलन की आशा त्याग देने से पिंगला (वेश्या) सुख की नींद सो सकी।
 
2. न मे मानावमानौ स्तो न चिंता गेह-पुत्रिणाम्।
आत्मक्रीड आत्मरतिर् विचरामीह बालवत्।।
अर्थः
मुझे (किसी तरह का) मान-अपमान नहीं। घर-बार और पुत्र-परिवारवालों को जो चिंता होती है, वह मुझे नहीं है। मैं छोटे बालक की तरह आत्मा में रंगकर आत्मा में ही क्रीड़ा करता घूमता रहता हूँ।
 
3. वासे बहूनां कलहो भवेद् वार्ता द्वयोरपि।
ऐक ऐव चरेत् तस्मात् कुमार्या इव कंकणः॥
अर्थः
बहुत से लोग एक साथ जुटने पर झगड़ा हो जाता है। दो हों, तो भी कहासुनी, वाद-विवाद होता है, इसलिए (आवाज न हो, इसलिए जिस प्रकार उस) कुमारी ने हर कलाई में एक-एक ही कंकण रखा, उसी प्रकार अकेले ही विचरना चाहिए।
 
4. तदैवमात्मन्यवरुद्ध-चित्तो
न वेद किंचित् बहिरंतरं वा।
यथेषुकारो नृपतिं व्रजन्तं
इषौ गतात्मा न ददर्श पार्श्वे॥
अर्थः
तीर बनाने में तल्लीन कारीगर को अपने पास से ही गुजरती राजा की सवारी नहीं दिखायी पड़ी। इसी तरह आत्मस्वरूप में लीन योगी को बाहरी या भीतरी किसी भी पदार्थ का भान नहीं होता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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