भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 66

Prev.png

28. ब्रह्म-स्थिति

 
1. यावद् देहेंद्रियप्राणैर् आत्मनः सन्निकर्षणम्।
संसारः फलवान् तावत् अपार्थोऽप्यविवेकिनः॥
अर्थः
जब तक अविवेकी पुरुष अज्ञानवश देह, इंद्रिय और प्राणों का आत्मा से संबंध जोड़ता है, तब तक उसे यह संसार, मिथ्या होते हुए भी, सुख-दुःखादि फल देता है।
2. अर्थे ह्यविद्यमानेऽपि संसृतिर् न निवर्तते।
ध्यायतो विषयान् अस्य स्वप्नेऽनर्थागमो यथा॥
अर्थः
स्वप्न में अनेक विपत्तियाँ आती हैं, लेकिन वास्तव में वे नहीं होती। इसी तरह अर्थ (यानी विषयों के) न रहते हुए भी विषयों का चिंतन करने वाला संसार-निवृत्त ही नहीं होता।
 
3. शोक, हर्ष, भय, क्रोध, लोभ, मोह, स्पृहादयः।
अहंकारस्य दृश्यन्ते जन्ममृत्युश्च नात्मनः॥
अर्थः
शोक, हर्ष, भय, क्रोध, लोभ, मोह, स्पृहा आदि विकार और जन्म-मरण अवस्थाएं- ये सभी अहंकार के धर्म हैं, ऐसा दीख पड़ता है। वे आत्मा के धर्म नहीं है।
 
4. अमूलमेतद् बहु-रूप-रूपितं
मनो-वचः- प्राण शरीर-कर्म।
ज्ञानासिनोपासनया शितेन
च्छित्त्वा मुनिर् गां विचरत्यतृष्णः।।
अर्थः
अनेक रूपों में प्रकट होने वाले ये मानसिक, वाचिक, प्राण संबंधी और कायिक कर्म वास्तव में निर्मूल ही होते हैं। ज्ञानी भक्त उन्हें उपासना से तेज किए हुए ज्ञानरूपी खड्ग से छेदकर निष्काम हो पृथ्वी पर विचरता है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः