भागवत धर्म मीमांसा10. पूजा(27.1) पिंडे वाय्वग्नि-संशुद्धे हृत्पद्मस्थां परां मम। एक बहुत सूक्ष्म जीवकला है, उसका ध्यान करना चाहिए। जैमिनि ने आत्मा को अणु माना है, यहाँ भी कहा है कि जीवकला अणु-समान है। लेकिन यहाँ आत्मविषयक वाद नहीं है। अणु यानि सूक्ष्म जीवकला का ध्यान करने के लिए कह रहे हैं – अण्वीं जीवकलां ध्यायेत्। यह ध्यान कब करना है? नादान्ते – नाद की समाप्ति पर। नाद यानि क्या? ॐ नाद है, उसके अन्त में जीवकला का ध्यान करना है। यह जीवकला है कहाँ? हृत्पद्यस्थाम् – हृदय में है। कैसी है? परां मम – मेरी परम कला है। यह जो सारी सृष्टि दीखती है, वह भगवान की ही कला है। लेकिन यह हृदय-कला है।
वायु से मन्दिर शुद्ध करने के लिए कहा है, इसीलिए बाबा अधिक-से-अधिक खुले आकाश में रहता है। भगवान की कला पेड़ में भी दीखती है, लेकिन यहाँ हृदयस्थ जीवकला को लिया है। फिर कहा है, उस कला का भावन अनेक सिद्ध-पुरुषों ने किया है। भावन यानि बार-बार स्मरण, अनुसन्धान करना। जैसे होमियोपैथी की दवा घोट-घोटकर तैयार की जाती है। इसी को कहते हैं, ‘पोटेन्सी’ बढ़ाना। इसी का नाम है सिद्ध भाविताम्। यह सारा कहकर सलाह क्या दी? यही कि भाई! सिद्ध पुरुषों ने जो मार्ग दिखाया है, उस पर चलो। यानि इसके लिए मार्गदर्शन लेना चाहें तो सिद्ध पुरुषों से लें। यहाँ पूजा-विधि समझायी जा रही है। प्रथम तो ध्यान करें, फिर क्या करें? तो कहते हैं : (27.2) स्तवैरुच्चावचैः स्तोत्रैः पौराणैः प्राकृतैरपि। छोटे-बड़े स्तोत्रों से स्तवन करें। कौन-से स्तोत्र? स्तोत्र भी चुनने चाहिए। कहाँ से चुने जाएँ? पुराणों से। पुराणों से चुनने के लिए क्यों कहा? इसिलए कि वे घोटे हुए हैं, भावन किये हुए हैं। उनकी ‘पोटेन्सी’ बढ़ी है। कुछ प्राकृत स्तोत्र भी चल जायेंगे। तुलसीदास जी की ‘विनय-पत्रिका’ चलेगी। फिर स्तवन तो अपनी वाणी से करना है। स्तुत्वा प्रसीद भगवन्! – स्तोत्रों से नहीं, अपनी वाणी से, अपने शब्दों में भगवान से हम क्षमा माँगें। मेरी माँ कहा करती थी : ‘अनन्तकोटिब्रह्माण्डनायक! मेरे अपराधों को क्षमा कर।’ इसका नाम है स्तवन।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 11.27.23
- ↑ भागवत-11.27.45
- ↑ यह ‘षट्पदी-स्तोत्र’ श्री शंकराचार्य-कृत कहा जाता है, जिसमें मात्र, जिसमें मात्र, 6. श्लोक हैं। इसका आरंभ है : ‘अविनयमपनय विष्णो!.....’
- ↑ ‘म्हिम्नः-स्तोत्र’ भगवान शंकर की स्तुति में पुष्पदन्ताचार्य ने बनाया है, जिसके कुल 43 श्लोक हैं। इसका आरंभ है : ‘महिम्नः पारं ते....!’
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