भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 57

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22. संसार प्रवाह

 
1. मनः कर्म-मयं नृणां इंद्रियैः पंचभिर् युतम्।
लोकाल्लोक प्रयात्यन्य आत्मा तदनुवर्तते॥
अर्थः
मानव का कर्ममय मन पंचेंद्रियों सहित एक लोक से (देह से) दूसरे लोक में (देह में) जाता है। आत्मा उससे अलग ही है। वह उस मन का (सूक्ष्म शरीर का) अनुसरण करता है।
 
2. नित्यदा ह्यंग! भूतानि भवन्ति न भवन्ति च।
कालेनालक्ष्य-वेगेन सूक्ष्मत्वात् तन्न दृश्यते॥
अर्थः
हे उद्धव! काल के अतर्क्य वेग से सभी भूत क्षण-क्षण जनमते और मरते हैं। किंतु यह (स्थित्यन्तरण) सूक्ष्म होने से दिखाई नहीं देता।
 
3. सोऽयं दीपोऽर्चिषां यद्वत् स्रोतसां तदिदं जलम्।
सोऽयं पुमानिति नृणां मृणा गीर् धीर् मृषायुषाम्॥
अर्थः
‘यह उसी ज्योति का दीपक है या यह उसी प्रवाह का जल है’, ऐसा कहना और मानना मिथ्या है। (क्योंकि दीप-ज्योति और प्रवाह का जल क्षण-क्षण बदलता रहता है)। इसी तरह मानवों को ‘यह वही पुरुष है’ ऐसा मूढ़ जनों का कहना और समझना मिथ्या है।
 
4. निषेक-गर्भ-जन्मानि बाल्य-कौमार-यौवनम्।
वयोमध्यं जरा मृत्युर् इत्यवस्थास् तनोर् नव॥
अर्थः
गर्भाधान, गर्भवृद्धि, जन्म, बचपन, कुमारवस्था, युवावस्था, अधेड़पन, बुढ़ापा और मृत्यु- ये शरीर की नौ अवस्थाएं हैं।
 
5. प्रकृतेरेवमात्मानं अविविच्याबुधः पुमान्।
तत्त्वेन स्पर्श-संमूढ़ः संसारं प्रतिपद्यते॥
अर्थः
तत्त्वविचार द्वारा प्रकृति से आत्मा को पृथक न करते हुए अज्ञानी मनुष्य विषयों से मोहित होते हैं और संसार के चक्कर में पड़ते हैं।
 
6. तस्मादुद्धव! मा भुंक्ष्व विषयान् असंदिद्रियै:।
आत्माग्रहण-निर्भातं पश्य वैकल्पिकं भ्रमम्।।
अर्थः
इसलिए हे उद्धव! मिथ्या इंद्रियों से विषयों का भोग मत करो। आत्मा का ग्रहण न होने से प्रतीत होने वाला यह (सांसारिक) भेदरूप भ्रम है, ऐसा समझो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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