भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 29

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11. बद्धमुक्त मुमुक्षु-साधक

1. बद्धो मुक्त इति व्याख्या गुणतो मे न वस्तुतः।
गुणस्य मायामूलत्वात् न मे मोक्षो न बंधनम्।।
अर्थः
‘बद्ध-मुक्त’ यह भाषा गुणों के कारण है। मुझे वह वस्तुतः लागू नहीं। गुण मायामूलक होने से न मुझे मोक्ष है और न बंधन ही।
 
2. शोकमोहौ सुखं दुःखं देहोत्पत्तिश्च मायया।
स्वप्नो यथाऽऽत्मनः ख्यातिः संसृतिर् न तु वास्तवी।।
अर्थः
शोक-मोह, सुख-दुःख और देह की उत्पत्ति, ये माया के कारण भासते हैं। जैसे स्वप्न वैसे ही यह संसृति यानि अपनी केवल कल्पना है, वास्तविक नहीं।
 
3. विद्याविद्ये मम तनू विद्ध्युद्धव! शरीरिणाम्।
मोक्षबंधकरी आद्ये मायया मे विनिर्मिते।।
अर्थः
उद्धव! मेरी माया से निर्मित विद्या और अविद्या मेरे दो अनादि रूप हैं। वे देहधारियों को क्रमशः मोक्ष और बंध देने वाली हैं, यह जानो।
 
4. ऐकस्यैव ममांशस्य जीवस्यैव महामते।
बंधोऽस्याविद्ययानादिर् विद्यया च तथेतरः।।
अर्थः

बुद्धिमान उद्धव! मेरे ही एक अंशमात्र जीव को ही अविद्या के कारण अनादि बंध होता है और विद्या से मोक्ष मिलता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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