भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 154

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भागवत धर्म मीमांसा

12. कृष्ण-चरित्र-स्मरण

 
(31.10) भवभयमपहन्तुं ज्ञान-विज्ञान-सारं
निगमकृदुपजह्रे भृंगवद् वेदसारम् ।
अमृतमुदधितश्चापाययद् भृत्यवर्गान्
पुरुषमृषभमाद्यं कृष्णसंज्ञं नतोऽस्मि ॥[1]

निगमकृदुपजह्रे भृंगवद् वेदसारम्भगवान कृष्ण ने वेद का निर्माण किया, इसलिए वे हुए निगमकृत्। वेद का निर्माण करने वाले उन भगवान कृष्ण ने उद्धव के लिए ‘वेदसार’, उपजह्रे – ग्रहण किया यानि निकाला, किसकी तरह? तो भृंगवद् – जैसे भृंग यानि भँवरा फूलों में से सार ले लेता है, वैस ही वेद को पैदा करने वाले कृष्ण ने वेद का सार – वेदसारम् – निकाला। किसलिए निकाला? भवभयम् अपहन्तुम् – भव भय दूर करने के लिए। वह वेदसार कैसा है? ज्ञान-विज्ञान-सारम् – ज्ञान-विज्ञान का सार ही है।

अमृतम् उदधितश्र्व अपाययद् भृत्यवर्गान् – (जिन्होंने मानो वेद -) समुद्र से यह अमृत निकालकर अपने भृत्यों, सेवकों को पिलाया, पुरुषम् ऋषभम् आद्यं कृष्णसंज्ञं नतोऽस्मि – उन आद्य महापुरुष जिनकी भगवान ‘कृष्ण’ संज्ञा है, हम प्रणाम करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागवत-11.29.49

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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