भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 69

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29. भक्ति सारामृत

 
1. हन्त ते कथयिष्यामि मम धर्मान् सुमंगलान्।
यान् श्रद्धयाऽऽचरन् मर्त्यो मृत्युं जयति दुर्जयम्॥
अर्थः
हे उद्धव! अपना अत्यंत कल्याणकारी भागवत-धर्म तुझे बताता हूँ, सुन। उसका श्रद्धा से आचरण करने पर अत्यंत दुर्जन्य मृत्यु पर मानव विजय पा लेता है।
 
2. कुर्यात् सर्वाणि कर्माणि मदर्थं शनकैः स्मरन्।
मय्यर्पित मनश्चित्तो मद्धर्मात्ममनोरतिः॥
अर्थः
मेरे भागवत-धर्म में स्वयं रमकर, अपना मन और चित्त मुझे अर्पण कर, सावधानी से मेरा स्मरण करते हुए- सब कर्म मेरे लिए धीरे-धीरे करता जा।
 
3. मामेव सर्वभूतेषु बहिरन्तरपावृतम्।
ईक्षेतात्मनि चात्मानं यथा खं अमलाशयः॥
अर्थः
शुद्ध अंतःकरण वाला पुरुष आकाश की तरह बाहर-भीतर आवरणरहित और मुक्त (निरुपाधि) मुझे यानि आत्मा को सब प्राणियों में और अपने हृदय में स्थित देखे।
 
4. ब्रह्मणे पुल्कसे स्तेने ब्रह्मण्येऽर्के स्फुलिंगके।
अक्रूरे क्रूरके चैव समदृक् पंडितो मतः॥
अर्थः
ब्राह्मण और अन्त्यज (जाति); चोर और साहू (कर्म); सूर्य और चिन्गारी (गुण); कृपालु और क्रूर (स्वभाव)- इन विषम वस्तुओं को जो समदृष्टि से देखता है, उसे ‘पंडित’ कहते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत धर्म सार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. ईश्वर-प्रार्थना 3
2. भागवत-धर्म 6
3. भक्त-लक्षण 9
4. माया-तरण 12
5. ब्रह्म-स्वरूप 15
6. आत्मोद्धार 16
7. गुरुबोध (1) सृष्टि-गुरु 18
8. गुरुबोध (2) प्राणि-गुरु 21
9. गुरुबोध (3) मानव-गुरु 24
10. आत्म-विद्या 26
11. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु-साधक 29
12. वृक्षच्छेद 34
13. हंस-गीत 36
14. भक्ति-पावनत्व 39
15. सिद्धि-विभूति-निराकांक्षा 42
16. गुण-विकास 43
17. वर्णाश्रम-सार 46
18. विशेष सूचनाएँ 48
19. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 49
20. योग-त्रयी 52
21. वेद-तात्पर्य 56
22. संसार प्रवाह 57
23. भिक्षु गीत 58
24. पारतंत्र्य-मीमांसा 60
25. सत्व-संशुद्धि 61
26. सत्संगति 63
27. पूजा 64
28. ब्रह्म-स्थिति 66
29. भक्ति सारामृत 69
30. मुक्त विहार 71
31. कृष्ण-चरित्र-स्मरण 72
भागवत धर्म मीमांसा
1. भागवत धर्म 74
2. भक्त-लक्षण 81
3. माया-संतरण 89
4. बद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक 99
5. वर्णाश्रण-सार 112
6. ज्ञान-वैराग्य-भक्ति 115
7. वेद-तात्पर्य 125
8. संसार-प्रवाह 134
9. पारतन्त्र्य-मीमांसा 138
10. पूजा 140
11. ब्रह्म-स्थिति 145
12. आत्म-विद्या 154
13. अंतिम पृष्ठ 155

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