श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-3
कर्मयोग
उसी प्रकार काम और क्रोध से ढँके होने के कारण ज्ञान स्वयं शुद्ध होने पर भी गूढ़ बना रहता है, इसी कारण ज्ञान-प्राप्ति की कठिनता मालूम होती है। अब यदि यह कहें कि सबसे पहले इन काम और क्रोध को जीतना चाहिये और तब ज्ञान का सम्पादन करना चाहिये, तो काम-क्रोधरूपी राक्षसों का पराभव होना सम्भव नहीं होता। यदि यह कहें कि इन काम, क्रोध आदि राक्षसों को मारने के लिये अपने शरीर में शक्ति-सामर्थ्य लानी चाहिये, तो जैसे ईंधन आग की सहायता ही करता है।[1]
वैसे ही जो-जो उपाय किये जायँ, वे सब-के-सब इन्हीं के सहयोग में लग जाते हैं। इसीलिये काम और क्रोध-ये दोनों हठयोगियों को बहुत परेशान करते हैं अर्थात् इन लोगों को जीत लेते हैं। ऐसे ये जो काम-क्रोध जीतने में अत्यन्त कठिन हैं, तो भी उनको जीतने का एक अच्छा (श्रेष्ठ) उपाय है; वह तुम्हारे से हो जाय तो उसे बतलाता हूँ।[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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