श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-3
कर्मयोग
हे पार्थ! अब मैं इसी विषय से सम्बन्धित एक कथा तुम्हें सुनाता हूँ। जब ब्रह्मा ने समस्त सृष्टि की रचना की थी,[1]
तब उन्होंने सम्पूर्ण प्राणियों के साथ ही नित्य यज्ञ भी उत्पन्न किया। परन्तु नित्याचार का धर्म गूढ़ होने के कारण वह नासमझ प्राणियों की समझ में नहीं आता था। उस समय सब लोगों ने मिलकर ब्रह्मदेव से विनती की कि हे देव! हमारे लिये वह कौन-सा ऐसा आधार है, जिससे सब काम अच्छी तरह से सम्पन्न हो? उस समय कमलजन्मा ब्रह्मा ने प्राणियों से कहा कि तुम्हारी वर्ण व्यवस्था के अनुसार स्वधर्म की रचना की गयी है, तुम लोग इसी की उपासना (आचरण) करो, तो तुम्हारी सभी मनोकामनाएँ अपने-आप पूरी होती रहेंगी। तुम लोगों को व्रतादि के चक्कर में पड़ने की जरूरत नहीं है; तपश्चर्या करके शरीर को सुखाने की भी जरूरत नहीं है और दूरवर्ती तीर्थाटन की भी आवश्यकता नहीं है। योगादिक साधन, सकाम अनुष्ठान एवं तान्त्रिक प्रयोग में मत पड़ना; नाना प्रकार के देवताओं को भजन-पूजन मत करो। एकमात्र स्वधर्म का पालन करो और उनके कारण अपने-आप सम्पन्न होने वाले यज्ञों को करते चलो। तुम अपने अन्तःकरण में स्वार्थ को फटकने मत दो और केवल स्वधर्म का अनुष्ठान करो। जैसे पतिव्रता अपनी पति की आराधना करती है, ठीक वैसे ही स्वधर्मरूपी यज्ञ की आराधना करना ही तुम लोगों का एकमात्र कर्तव्य है। सत्यलोकाधिपति ब्रह्मा ने यह भी कहा कि हे प्रजागण! यदि तुम लोग भक्ति-भाव से इस स्वधर्म की उपासना करोगे तो यह कामधेनु की भाँति तुम्हारी समस्त मनोकामनाएँ न केवल पूरी करेगा, अपितु यह कभी भी तुम लोगों को निराधार नहीं छोड़ेगा।[2]
जब तुम इस स्वधर्मरूपी यज्ञ से सारे देवताओं को सन्तुष्ट कर लोगे, तब वे तुम्हें समस्त अभीष्ट वस्तुएँ प्रदान करेंगे। जब इस स्वधर्माचरणरूपी पूजा से तुम देवताओं का पूजन करोगे, तब समस्त देवता तुम्हारे योगक्षेम का वहन भी करेंगे, तुम्हें किसी कमी का एहसास भी नहीं होने देंगे। जब तुम देवताओं का भजन-पूजन करोगे तब वे देवता तुम पर प्रसन्न होंगे और इस प्रकार परस्पर प्रेमभाव उत्पन्न होगा। फिर तुम जो कुछ करना चाहोगे वह अपने-आप होता चला जायगा। इतना ही नहीं तुम्हारी समस्त मनोकामनाएँ भी पूरी हो जायँगी और तुम्हें वाक्-सिद्धि प्राप्त हो जायगी। तुम्हारे अन्दर आज्ञापक की सामर्थ्य आ जायगी और समस्त सिद्धियाँ तुम्हारी आज्ञा की वशवर्तिनी बनी रहेंगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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