आपके इस विश्वरूप को मनुष्य किस साधन से देख सकता है भगवन्?
किसी भी साधन से नहीं। हे कुरुप्रवीर! मनुष्यलोक में तुम- जैसे कृपापात्र के सिवाय इस तरह के रूप को कोई वेदाध्ययन, यज्ञ, दान, उग्र तपस्या और बड़ी-बड़ी क्रियाओं से भी नहीं देख सकता।।48।।
परन्तु भगवन्! इस समय तो मैं आपके घोररूप को देखकर बहुत भयभीत हो रहा हूँ; क्या करूँ?
भैया! मेरा ऐसा घोररूप देखकर तुझे भयभीत नहीं होना चाहिये और अपने में विमूढ़भाव (मोह) भी नहीं आने देना चाहिये। अब तू भयरहित और प्रसन्न मन वाला होकर मेरे उसी रूप को फिर देख।।49।।
ऐसा कहकर भगवान् ने अर्जुन को कौन-सा रूप दिखाया संजय?
संजय बोले- ऐसा कहकर भगवान् वासुदेव ने अर्जुन को अपना चतुर्भुजरूप दिखाया। फिर भगवान् ने पुनः सौम्य द्विभुजरूप होकर भयभीत अर्जुन को आश्वासन दिया।।50।।
अब तो तुम्हारा भय दूर हो गया न अर्जुन?
अर्जुन बोले- हे जनार्दन! आपके इस सौम्य मनुष्यरूप को देखकर अब मैं स्थिरचित्त हो गया हूँ और अपनी स्वाभाविक स्थिति में आ गया हूँ।।51।।
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