गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 89

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

ग्यारहवाँ अध्याय

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वह रूप आश्चर्यमय क्यों था संजय?
यदि आकाश में हजारों सूर्यों का एक साथ उदय हो जाय तो भी उन सबका प्रकाश मिलकर उस विश्वरूप के प्रकाश के सामने कुछ भी नहीं है।।12।।

अर्जुन ने वह रूप कहाँ देखा?
अर्जुन ने देवों के देव भगवान् के शरीर के एक अंश में सम्पूर्ण संसार को अनेक विभागों से युक्त देखा।।13।।

उस रूप को देखकर अर्जुन ने क्या किया संजय?
भगवान् के उस विश्वरूप को देकर अर्जुन बहुत आश्चर्यचकित हुए और उनके रोंगटे खड़े हो गये। वे हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर प्रणाम करते हुए विश्वरूप भगवान् की स्तुति करने लगे।।14।।

अर्जुन बोले- हे देव! मैं आपके शरीर में सम्पूर्ण देवताओं को, प्राणियों के विशेष-विशेष समुदायों को, कमलासन पर बैठे हुए ब्रह्मा जी को, कैलासपर विराजमान शंकर को, सम्पूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सर्पों को देख रहा हूँ।।15।।

हे विश्वरूप! हे विश्वेश्वर! मैं आपको अनेक हाथ, पेट, मुख और नेत्रवाला तथा सब तरफ से अनन्त रूपवाला देख रहा हूँ। मैं आपके आदि, मध्य और अन्त को भी नहीं देख रहा हूँ। मैं आपको सिरपर मुकुट तथा हाथों में गदा, चक्र (शंख और पद्म) धारण किये हुए, तेज का समूह, सब तरफ प्रकाश करने वाले, देदीप्यमान अग्नि और सूर्य के समान कान्ति वाले, नेत्रों से कठिनता से देखे जाने योग्य और सब तरफ से अप्रमेयस्वरूप देख रहा हूँ।।16-17।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

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