गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 70

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

आठवाँ अध्याय

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निर्गुण-निराकार के चिन्तन से आप प्राप्त हो जाते हैं; यह बात मैंने सुन ली। अब यह बताइये कि सगुण-साकार के चिन्तन से नियतात्मा मनुष्य आपको कैसे प्राप्त करता है?
हे पार्थ! अनन्य चित्तवाला जो मनुष्य नित्य-निरन्तर मेरा ही चिन्तन करता है, मेरे में सदा लगे हुए उस योगी को मैं सुलभ हूँ अर्थात् उसको मैं सुलभता से प्राप्त हो जाता हूँ।।14।।

आपकी प्राप्ति से क्या होता है भगवन्?
जो महात्मा लोग मेरे परम प्रेम से युक्त होकर मेरे को प्राप्त कर लेते हैं, वे हर समय मिटने वाले और दुःखों के घररूप पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते।।15।।

तो फिर पुनर्जन्म किसका होता है?
हे अर्जुन! ब्रह्मलोक तक सभी लोक पुनरावर्ती हैं, इसलिये उन लोकों में जाने पर फिर लौटकर आना ही पड़ता है अर्थात् फिर जन्म लेना ही पड़ता है। परन्तु हे कौन्तेय! मेरी प्राप्ति होने पर फिर जन्म नहीं लेना पड़ता।।16।।

वे लोक पुनरावर्ती क्यों हैं?
काल की अवधि वाले होने से।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
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