गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास
छठा अध्याय
अर्जुन बोले- हे कृष्ण! जिसकी साधन में श्रद्धा है, पर जिसका प्रयत्न शिथिल है, ऐसे साधक की अन्तकाल में साधन में स्थिति न रहे तो वह योगसिद्धि को प्राप्त न करके किस गति में जाता है? संसार के आश्रय से रहित और परमात्मप्राप्ति के मार्ग से विचलित उभयभ्रष्ट साधक छिन्न-भिन्न बादल की तरह नष्ट तो नहीं हो जाता? हे कृष्ण! यह मेरा सन्देह है। मेरे इस सन्देह को आप ही सर्वथा मिटा सकते हैं; क्योंकि इस सन्देह को आपके सिवा दूसरा कोई मिटा ही नहीं सकता।।37-39।। भगवान् बोले- पार्थ! उसका न तो इस लोक में और न परलोक में ही पतन होता है; क्योंकि हे प्यारे! कल्याणकारी काम करने वाला कोई भी साधक दुर्गति में नहीं जाता।।40।। वह दुर्गति में नहीं जाता तो फिर कहाँ जाता है? तत्त्वज्ञ योगियों के कुल में जन्म लेने पर क्या होता है? |