गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 55

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

छठा अध्याय

Prev.png

दुःखों का नाश करने वाला यह योग कब सिद्ध होता है?
जब अच्छी तरह से वश में किया हुआ चित्त अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है और स्वयं सम्पूर्ण पदार्थों से विमुख हो जाता है अर्थात् अपने लिये किसी भी पदार्थ की किन्चिमात्र भी आवश्यकता नहीं समझता, तब वह योग कहलाता है अर्थात् उसका योग सिद्ध हो जाता है।।18।।

योगी के उस चित्त की क्या अवस्था होती है? जैसे स्पन्दरहित वायु के स्थान पर रखे हुए दीपक की लौ थोड़ी-सी भी हिलती-डुलती नहीं, ऐसी अवस्था ध्यानयोग का अभ्यास करने वाले योगी के स्थिर चित्त की हो जाती है।।19।।

चित्त की ऐसी अवस्था होने पर क्या होता है?
योग के अभ्यास से निरुद्ध हुआ चित्त जब समाधि के सुख से भी उपराम हो जाता है, तब योगी अपने-आपमें अपने-आपको देखता हुआ अपने-आपमें सन्तुष्ट हो जाता है।।20।।

अपने-आप में सन्तुष्ट होनेपर क्या होता है?
योगी को सीमारहित, इन्द्रियों से अतीत और बुद्धि से ग्रहण करने योग्य सुख का अनुभव होता है। ऐसे वास्तविक सुख में स्थित होने पर वह ध्यानयोगी फिर कभी अपने स्वरूप से विचलित नहीं होता।।21।।

Next.png

संबंधित लेख

गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः