गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 31

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

तीसरा अध्याय

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क्या मैं भी ऐसा बन सकता हूँ भगवन्?
हाँ, बन सकता है। तू निरन्तर आसक्तिरहित होकर अपने कर्तव्य का अच्छी तरह पालन कर; क्योंकि आसक्तिरहित होकर कर्तव्यकर्म करने से मनुष्य को परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है।।19।।

पहले आसक्तिरहित होकर क्या किसी ने कर्म किये हैं और क्या उनको परमात्मा की प्राप्ति भी हुई है?
हाँ, राजा जनक-जैसे अनेक महापुरुष कर्तव्यकर्म करके ही परमात्मा को प्राप्त हुए हैं। परमात्मा को प्राप्त होने पर भी उन्होंने लोकसंग्रह (दुनिया को कुमार्ग से बचाकर सन्मार्ग पर लाने) के लिये कर्म किये हैं। इसलिये तू भी लोकसंग्रह को ध्यान में रखते हुए अपने कर्तव्यकर्म का पालन कर।।20।।

वह लोकसंग्रह कैसे होता है?
दो प्रकार से होता है- अपनी कर्तव्यपरायणता से और अपने वचनों से श्रेष्ठ मनुष्य जो-जो आचरण करता है, दूसरे मनुष्य भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह अपने वचनों से जो कुछ प्रमाणित करता है, दूसरे मनुष्य भी उसी का अनुवर्तन करते हैं।।21।।

जैसे आपने परमात्माप्राप्ति के विषय में जनक आदि का उदाहरण दिया, ऐसे ही लोक-संग्रह के विषय में भी क्या कोई उदाहरण है?
हाँ, मेरा ही उदाहरण लो पार्थ! मेरे लिये त्रिलोकी में कुछ भी कर्तव्य बाकी नहीं है और प्राप्त करनेयोग्य कोई वस्तु अप्राप्त नहीं है, फिर भी मैं लोक-संग्रह के लिये कर्तव्यकर्म करता हूँ।।22।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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