विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों का समर्पण-पक्षहम तो तुम्हारा भजन करती हैं; तुम्हारी हम सेविका हैं, दासी हैं; तुम्हारी भक्त हैं। कृष्ण बोले- अच्छा, बोलो गोपी- ‘प्रियं किं करवाणि वः’ क्या करें तुमसे? तो बोलीं- भजस्व, हमारी भक्ति करो, जैसे हमने तुम्हारी भक्ति की है, वैसे तुम हमरी भक्ति करो। हमने तुम्हारी सेवा की तुम हमारी सेवा करो, हम तुम्हारा भजन करती हैं तुम हमारा भजन करो, कृष्ण ने कहा- तुम हमारी बराबरी करने पर उतारू क्यों हो? बोलीं- इसमें बै बात। बराबरी की बात नहीं, हम तो सिर्फ दस्तावेज को जो तुमने पहले लिख दिया था दुहरा रही। ‘यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्’ उस दस्तावेज के मुताबिक हम तुम्हारा भजन करती हैं तुम हमारा करो; हम कृष्ण-कृष्ण बोलती हैं, तुम गोपी-गोपी बोलो; हम तुम्हारे लिए नाचती हैं तुम हमारे लिए नाचो; हम तुम्हारे लिए व्याकुल, तुम हमारे लिए व्याकुल। भजस्व दुरवग्रह मा त्यजास्मान् अरे, मत छोड़ो बाबा, इसमें बाद में तुमको दुःख होगा। तुम्हारी भलाई के लिए कह रही हैं। अरे, हम तो गोपी हैं, मर जायेंगी, पर करोड़-करोड़ ये गोपी लौटकर व्रज में जाने वाली नहीं है, तुम्हीं इनकी हत्या का पाप लेकर व्रज में लौटो तो लौटो। और जाकर खुश होना, पर अब ये गोपी तो लौटाने वाली है नहीं।
हम तो तुम्हारी भलाई के लिए कहती हैं कि तुम्हारी बदनामी हो जाएगी, कि कृष्ण के लिए इतनी गोपियाँ मर गयीं। हाँ, तुमको ग्लानि होगी, कि हाय-हाय हमने अपने प्रेमियों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया। इसलिए हाय-हाय हमने अपने प्रेमियों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया। इसलिए मात्यजास्मान हमें छोड़ो मत, हमारा त्याग मत करो, हमारी मान लो।
बोले- इसमें दृष्टान्त क्या है? तो इसमें दृष्टांत बताती हैं- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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