विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण का अमिय-गरल-वर्षणअरे, उनका विश्वास तो यह है कि हम तो श्रीकृष्ण से कम प्रेम करती हैं, वह ही हमसे ज्यादा प्रेम करते हैं। प्रेम में मन में जब यह कल्पना हो जाय कि हमारा प्रेम तो बहुत ज्यादा है उनका कम है, तो यह प्रेम का उल्टा मार्ग है; और प्रेम का सीधा मार्ग यह है कि उनका प्रेम बहुत ज्यादा है, तुम्हारा कम है। जब उनके प्रेम पर विश्वास होता है तब अपना प्रेम बढ़ता है। और जब अपने प्रेम का अभिमान होता है और उनके प्रेम पर अविश्वास होता तो प्रेम घट जाता है क्योंकि प्रेम में अपने प्रेम की निरभिमानता और सामने वाले के प्रेम पर विश्वास, ये दोनों प्रेम की जड़ हैं। विश्वास प्रेम का बाप है और अभिमान प्रेम का शत्रु है। तो प्रणय-निमंत्रण ही वापस ले लिया श्रीकृष्ण ने! माने गोपियों के हृदय में जो उनके प्रति विश्वास था उस पर एक ठोकर लगायी। और श्रीकृष्ण के लिए गोपियों के हृदय में जो त्याग था- अपने शरीर तक का त्याग, खाना छोड़कर आयीं, अंजन त्यागकर आयीं, शरीर की परवाह छोड़कर आयीं- अब उसकी याद दिलाते हैं कि अंधेरी रात में तकलीफ होगी तुमको। इस प्रकार उनके त्याग पर चोट की। और तीसरे देखो माता, पिता, भाई, बन्धु सब उनको रोक रहे थे, उन सबके ऊपर पाँव रखकर आयीं- ता वार्यमाणाः पतिभिः पितृभर्भ्रातृबन्धुभिः । उनको पता ही नहीं लगा कि हमारे पाँव के नीचे कौन पड़ा है? उल्लंघन करके आयीं, अपने घर के संबंधियों को लाँघ-लाँघकर आयीं, अब उनको उन्हीं संबंधियों की याद फिर से दिला रहा है कि उनके लिए तुम लौट जाओ। ये तो उनके अभूतपूर्व त्याग, अभूतपूर्व वैराग्य, अभूतपूर्व संसार के प्रति निर्भयता और केवल कृष्ण के प्रति जो ममता, उस ममता पर ही आक्षेप हुआ न। अब तो गोपी देख नहीं सके उनकी ओर! क्या मन में समझकर आयी थीं? सोचकर आयी थीं कि पीने को मिलेगा अमृत, और यहाँ तो विष वर्षण प्रारंभ हो गया! विश्वनाथ चक्रवर्ती ने इसको विष-वर्षण कहा है। ऐसा विष बरसा, ऐसा विष बरसा महाराज, कि सिवाय गोपियों के इसको कोई दूसरा सहन नहीं कर सकता था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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