विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपी दौड़कर गयीं कृष्ण के पास और कृष्ण ने कहा कि लौट-जाओअब महाराज जैसे तवा खूब जल रहा हो और उसमें कोई पानी का छींटा मार दे तो फक्क से हो जाय वैसे ही ये गोपियाँ कितना प्यार, कितनी उमंग, कितनी लालसा कितनी व्याकुलता कितनी उत्कण्ठा मिलन की, कितनी तीव्र आकांक्षा लेकर कृष्ण के पास कृष्ण से मिलने के लिए गयीं और अब उनकी यह बात। हमको पहले तो दिया रासका वरदान और फिर बाँसुरी बजाकर बुलाया और अब जब आनन्द-ही-आनन्द की आशा लिए इनके पास आयीं तो महाराज कुशल मंगल पूछने लगे कि ब्रज में कोई बीमारी तो नहीं आयी, ब्रज में कोई असुर तो नहीं आया, आयी क्यों हो, जैसे कुछ याद ही न हो! इसका मतलब क्या? क्या कात्यायनी पूजन के लिए पूर्णाहुति के दिन जो वरदान दिया था वह भूल गये? बाँसुरी बजायी बुलाने के लिए, हमारा नाम ले-लेकर के क्या यह भूल गये? कृष्ण ने कहा- राम-राम! बाबा, तुम्हारे मन समायी होंगी ये बातें हम तो आनन्द में विभोर होकर अपनी बाँसुरी बजा रहे थे, एकान्त में अभ्यास, रियाज कर रहे थे, उसमें तुम लोगों ने अपना नाम क्यों जोड़ दिया? हम क्या यहाँ न्यौता देने के लिए खड़े हैं? क्यों आयी हो तुम? बाद में कृष्ण ने कहा- तुम रोज-रोज हमको छकाती थीं और हमारी जरा सी बात में तुम छक गयी? व्रजस्यानामयं काश्चिद् ब्रूतागमनकारणम् । पहले बताओ कि तुम आयी क्यों हो? आने का कारण अब कौन बतावे? न गोपी बतावे कि हम तुमसे प्रेम करने के लिए आयी हैं न कृष्ण बतावें कि तुमसे प्रेम करने के लिए हमने बुलाया है! कैसे अपने मुँह से बतावें? पर भगवान ने कहा कि जब तक अपने मुँह से बताओगी नहीं गोरी, तब तक ये साँवरा-साँवरा भी हिलने डुलने वाला नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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