विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपी दौड़कर गयीं कृष्ण के पास और कृष्ण ने कहा कि लौट-जाओमहाराज, अब तो वे पहुँची। देखा भगवान् ने अरे बाबा, उनसे अब कैसे छूटें? तो बाँसुरी हटा दी, क्योंकि बाँसुरी तो बुलाती है, कहाँ तक बुलायेगी? वह तो आँख मिले तब भी बुलावे, साँस-से-साँस मिल जाय तब भी बुलावे, त्वचा-से-त्वचा मिल जाय तब भी बुलावे, कहाँ तक बुलावे ये बाँसुरी? भगवान् ने बाँसुरी को अलग किया। बाँसुरी मुखर है, मुखर है माने जो ज्यादा बोले। किसी-किसी का स्वभाव होता है बोलता जाय, बोलता जाय, बोलता जाय। बाँसुरी ने अपनी जड़ता का खूब फायदा उठाया है। यह साक्षात् सरस्वती है, यह तो श्रीकृष्ण के रूप-सौन्दर्य पर उनके प्रेम पर जब मोहित हो गयी तो जड़ हो गयी। सरस्वती जड़ भावापन्न होकर जड़ बनी; अब वह तो लगी-लगी अधरामृत का पान करे और बोलती जाय; तो भगवान् ने कहा- ये बुलाये भी। अब इन गोपियों के लिए बुलाने की जरूरत नहीं है, अब ये तो आ गयीं। अब इनको बाँसुरी की जरूरत नहीं है, इनको गुरु की जरूरत नहीं है, अब इनको दूती की आवश्यकता नहीं है। अब कोई बीच में तीसरे के रहने की जरूरत नहीं है, अब सीधे-सीधे बात करने की जरूरत है। देखो श्रृंगार रस का प्रभाव यह है कि उसमें पुरुष जो है वह अपनी ओर से मिलने के लिए उत्सुक होवे, वो धृष्टता करे और स्त्री दुर्लभ होवे, मानिनी होवे, यह श्रृंगार की साहित्यिक मर्यादा है। तभी श्रृंगार समृद्ध होता है। यहाँ उल्टा हो गया-दुहन्त्योऽभिययुः काश्चिद् दोहं हित्वा समुत्सुकाः । उत्सुकता आ गयी गोपी में, व्याकुलता आ गयी गोपी में, उत्कण्ठा आ गयी गोपी में। तो श्रृंगार रस की दृष्टि से इस स्थिति को बहुत अच्छी नहीं मानते, रसाभास हो जाएगा। तो भगवान् ने कहा कि हमारी लीला में रसाभास भला क्यों होगा? आओ रस बनाते हैं। कैसे? कि तुम सब सुलभ हो गयीं तो हम दुर्लभ हो जाएंगे, एक क दुर्लभ हो जाना चाहिए। तब यह जो प्यास जगती है न, प्यास ही रस को रस बनाती है और सुलभता में प्यास नहीं होती है, सुलभता में प्यास बढ़ती नही है। तो कृष्ण ने कहा कि ठहरो- ‘स्वागतं वो महाभागाः’ अरे गोपियों! महाभाग्यवती है! अरे सब कैसे आयीं! सायंकाल का समय कहीं बिच्छू घूम रहा है, कहीं साँप बोल रहा है, कहीं गीदड़ कहीं साही। जंगल में भूली-भटकी नहीं? किसी को साँप- बिच्छू ने तो कहीं काटा तो नहीं? अरे आयीं कैसे? आने का आखिर मतलब, प्रयोजन क्या है? महाभाग्यवती गोपियो, महाभाग्य हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रवचन संख्या | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज