विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीभगवान ने वंशी बजायीऐसे भक्त लोग बोलते हैं। सुन्दर नेत्र का अर्थ है कि जो परम सुन्दर श्रीकृष्ण को निहारते हैं। तो वामदृशां का अर्थ हुआ कि गोपियों के नेत्र सुन्दर हैं- सुन्दर नेत्रोंवाली गोपियाँ। अब एक और अर्थ देखो- कुटिल आदमी दूसरे को फाँस लेता है। तो जिसकी आँखें कुटिल हों, जरा टेढ़ी हों, तिरछी चितवन जिसको बोलते हैं, वह है वामदृशा। अथवा ‘वाम’ शब्द का अर्थ हैं बायी। जिसकी बाँयी आँख ज्यादा चले उसका नाम ‘वामदृक’? यह देखो- जैसे स्त्री-पुरुष बैठे; तो दाहिने पुरुष बैठे और बायें स्त्री बैठी; तो दाहिनी आँख तो बिचारी की पहुँचती नहीं है, इसलिए बाँयी आँख जो है वह टेढ़ी होकर पुरुष की ओर देखती है। अच्छा ! ‘वामे सुन्दरे दृशो याषां’ वाम में सुन्दर है, अथवा महाराज; वामदृशां- किसी काम में स्त्री वाम भाग में बैठे, उसको वामा बोलेंगे- ‘वामदृशौ मनोहरम्’। कहा- नहीं-नहीं, बाबा, जिनकी चाल, ढाल, गति, मति दाहिने कभी नहीं, बायें ही रहे हमेशा। वह है वामदृक्। कहो- बोलो; तो चुप हो जायँ। कहो देखो- तो मुँह फेर लें। कहो कि चलो तो बैठ जायँ। इसको वाम बोलते हैं। हमेशा ही बाँये महाराज, कभी दाहिनी नहीं। ऐसी वामदृशां मनोहरम्। अब देखो- इसका भाव क्या है? भाव इसका यह है कि असल में आँख को तिरछी होनी चाहिए। क्यों? बोले- सीधे यह संसार की ओर देखते हैं, जरा टेढ़ी करो तो भगवान दिखेंगे। वह कैसे-चरणदास गुरु कृपा कीन्ही, उलटि गयीं मोरि नयन पुतरियाँ । एकैव शाम्भवी मुद्रा गुप्ता कुलवधूरिव । अन्तर्लक्ष्यम्- लक्ष्य हो भीतर और दृष्टि हो बाहर। शर्म के मारे खुलकर बाहर न देखती हो और भीतर-भीतर उसी का ध्यान करती हो, यह है बहू अधखुली आँख। जरा भीतर देखो- कौन है? परम सुन्दर ईश्वर भीतर बैठा हुआ है, ईश्वर से प्रेम करने वाली जो गोपी हैं, उनके मन को हरण करने वाला- मनोहरम्। अब मन को हरण करने वाला- इसका भाव क्या होता है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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