लौटकर न आना पड़े- इसके लिये क्या करें भगवन्?
हे पार्थ! इन दोनों मार्गों के परिणाम को जानने से कोई भी योगी संसार में मोहित नहीं होता। इसलिये हे अर्जुन! तू सब समय में योगयुक्त हो जा अर्थात् संसार में सदा ही निर्लिप्त, निर्विकार रह।।27।।
योगी होने से क्या होगा भगवन्?
वेद में, यज्ञ में, तप में तथा दान में जो-जो पुण्यफल कहे गये हैं, योगी उन सभी पुण्यफलों का अतिक्रमण करके आदिस्थान परमात्मा को प्राप्त हो जाता है।।28।।
|