मैं तो अपनी इच्छा के अनुसार कुछ नहीं करना चाहता भगवन्! आप ही बताइये कि मैं क्या करूँ?
तब तू मेरे इस सम्पूर्ण गोपनीय-से-गोपनीय परमवचन को फिर सुन। तू मेरा अत्यन्त प्यारा है, इसलिये मैं तेरे हितकी बात कहूँगा।।64।।
वह हितकी बात क्या है भगवन्?
तू मेरा भक्त हो जा, मेरे में मनवाला हो जा, मेरा पूजन कर और मेरे को ही नमस्कार कर। ऐसा करने से तू मेरे को ही प्राप्त हो जायगा-यह मैं तेरे सामने सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ; क्योंकि तू मेरा अत्यन्त प्यारा है।।65।।
अगर मैं ऐसा न कर पाऊँ तो भगवन्?
सम्पूर्ण धर्मों का आश्रय छोड़कर तू केवल एक मेरी शरण प्राप्त कर। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा। तू चिन्ता मत कर।।66।।
यह तो आपने बहुत सुगम और बढ़िया बात बतायी भगवन्। इस बातको मैं सबसे कह सकता हूँ क्या?
नहीं-नहीं भैया! इस अत्यन्त गोपनीय बात को असहिष्णु मनुष्य को मत कहना; जो मेरा भक्त नहीं है, उसको भी कभी मत कहना; जो इस बात को सुनना नहीं चाहता, उसको भी मत कहना और जो मेरे में दोषदृष्टि रखता है उसको भी मत कहना।।67।।
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