विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का अभिसारये व्रजस्त्रियः कोई ऐसी वैसी नहीं। व्रजस्त्रियः कृष्णगृहीतमानसाः- जैसे कोई भूत किसी आदमी को पकड़ ले, जैसे कोई जादूगकर कठपुतलियों को अपनी तरफ खींच ले, ऐसे ये कृष्ण के द्वारा पकड़ी गयीं थी। आप लोगों ने कठपुतलियों का खेल देखा हो। उसमें सूत्रधार- मालुम नहीं पड़ता है कि सूत्र कहाँ है और कठपुत्लियों को खींच लेता है। उनको हँसा दे, उनको रुला दे, उनको बुला दे। ऐसे ही गोपियों के शरीर का ढाँचा रह गया था। श्रीकृष्ण ने उनके मन को खींच लिया था। गृहीत मानसाः- पकड़ लिया था। वंशी-ध्वनि का यह एक महाचोर मिला, उसको कान का रास्ता मिला, उसके द्वारा भीतर गया, वहाँ उनके मनरूपी धन को उसने चुराया और चुराकर वहाँ से भागा तो जैसे चोर भागने लगे तो घर के लोग जो जैसे, वैसे ही चोर के पीछे दौड़ पड़ते हैं, किसी से सलाह करके नहीं दौड़ते हैं, जो जहाँ हो वहाँ से ही चोर के पीछ दौड़ता है कि माल छीन लो इससे; ऐसे गोपियाँ निकल पड़ीं जैसे कोई अपना चुराया हुआ माल छीनने के लिए जा रहा हो। श्रीकृष्ण ने किसी कंगन नहीं उतारा, कड़ा नहीं उतारा, किसी की करधनी नहीं उतारी, किसी का नूपुर या किसी का कुण्डल, किसी का हार नहीं उतारा- ये तो मामूली कीमत की चीजें हैं- जो सबसे कीमती वह जो दिल के संदूर में रहता है, कलेजे में बन्द रहता है, उसको शब्द से चुरा लिया, हाथ नहीं लगाया, क्या जादूगर है। कृष्मगृहीतमानसाः। मानस शब्द का एक अर्थ है, मन एवं मानस; स्वार्थ में ही प्रत्यय हुआ तो मन का अर्थ मानस हो गया। और एक इसका अर्थ है- मनः संबंधीनि मानसानि- मन से संबंध रखने वाली वृत्ति। दोनों अर्थों में फर्क हैं। गोपियों के मन में बड़े-बड़े माल रखे हुए थे और उन्हीं के बल पर कृष्ण से अलग टिकी हुई थीं। धृति थी, स्मृति थी, विवेक था, लज्जा थी, भय था, बुद्धि थी, ये सब गोपियों के दिल में रहता था। व्रजस्त्रितीयः कृष्णगृहीतमानसाः। आजग्मुरयोन्यम-लक्षितोद्यमाः स यत्र कान्तो जवलोलकुण्डलाः। श्रीकृष्ण ने क्या किया कि बाँसुरी बजायी। जब आदमी आनन्द में आ जाता है तो क्या होता है? अरे! हमने देखा है- बहुत बड़े आदमी हों, जो बोलने में या शिर झुकाने में तकलीफ मानते हैं, उनको संगीत सुनने को मिल जाए तो शिर हिलाने लगते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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