|
रासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
प्रवचन 15
जो जैसिह तैसेहि उठ धायीं-2
प्रेम के प्रतिबन्ध
तावार्यमाणाः पतिभिः.........दध्युर्मीलितलोचनाः
तावार्यमाणाः पतिभिः पितृभिर्भ्रातृबन्धुभिः ।
गोविन्दापहृतात्मानो न न्यवर्तन्त मोहिताः ।।
अंतर्गृहं गताः काश्चित गोप्योऽलब्धविनिगमाः ।
कृष्णं तद् भावनायुक्ता दध्युर्मीलितलोचनाः ।।
दुःसहप्रेष्ठविरह तीव्रतापधुताशुभाः ।
ध्यानप्राप्ताच्युताश्लेष, निर्वृत्याक्षीणमंगलाः ।।[1]
भगवान् से मिलने के लिए जाना और ख्याल शरीर का करें- दोनों एक-साथ नहीं हो सकते जैसे ज्ञान में देहात्म-बुद्धि और ब्रह्मयी दृष्टि दोनों एक साथ नहीं रह सकते, उसी प्रकार प्रेम में है। जैसे ज्ञान में विरोधी है देह का ध्यान, ऐसे प्रेम में विरोधी है वस्त्राभूषण। ये वस्त्र, आभूषण, किसी सौन्दर्य के सूचक नहीं है, ये सभ्यता के सूचक हैं, ये संस्कृति के सूचक हैं, ये शिष्टता के सूचक हैं, ये मर्यादा के सूचक हैं। यह तो सब ठीक है, पर यदि कहो कि वस्त्राभूषण में कोई प्रेम हो, कोई सौन्दर्य हो, तो राधेश्याम कहो। कालीदास ने शकुन्तला के सौन्दर्य का वर्णन किया है-
सरसिजमनुविद्धं शैवलेनाऽपि रम्यं,
मलिनमपि हिमांशोर्लक्ष्मीं तनोति ।
इयमधिकमनोज्ञा वल्कलेनाऽपि तन्वी,
किमिवहिमधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम् ।।
कहते हैं कि कमल के खिले फूल के साथ अगर शेवार चिपक जाए तो क्या कमल की शोभा में कोई फर्क पड़ जाएगा? अच्छा, सुन्दर मुख पर दो-चार बाल गिर जाएँ, आख को काटते हुए कपोल पर आ जाएं, तो क्या उससे सौन्दर्य घट जाता है? अरे, कमल पर अगर शेवार पड़ जाए तो उससे कमल की सुन्दरता घटी नहीं, बढ़ती है।
|
|