विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 44रासलीला का अन्तरंग-3संस्कृत भाषा में एक ग्रंथ है ‘प्रेमपत्तनम्’ प्रेम का शहर, प्रेम की नगरी; ‘पत्तनम्’, माने शहर जैसे दक्षिण में विजिगापत्तनम्, विशाखापत्तनम्। ‘पत्तनम्’ को अंग्रेजी वालों ने पट्टनम् कर लिया है। उसी से बिहार में जो ‘पटना’ शहर है वह ‘प्रेम-पत्तनम्’ ही है। अब उस ‘प्रेम-पत्तनम्’ नामक ग्रंथ में कथा है कि ये जो वेद हैं वे तो उस प्रेम की नगरी की चहार-दीवारी हैं, उसकी रक्षा करती है। बड़े-बड़े इतिहास-पुराण-न्याय वैशेषिक शास्त्र सब उसकी रक्षा में लगे रहते हैं। और प्रेमपत्तनम् के राजा का नाम है- मधुर-मेचक। मेचक माने श्याम, काला। तो मधुर कृष्ण, मधुर श्याम वहाँ के राजा हैं। उन्होंने पहले एक ब्याह कर रखा था, उनकी श्रीमती थीं शास्त्राभ्यास की पुत्री ‘मति’। मतिदेवी से ब्याह कर रखा था। बाद में कहीं अकस्तमात्- ‘रति’ से उनकी देखा-देखी हो गयी, तो घर में ले आये ‘रति’ को। (रति माने प्रीति) इस पर ‘मतिदेवी’ को बड़ा गुस्सा आया और वह प्रेमपत्तनम् छोड़करके फिर अपने पिता ‘शास्त्राभ्यास’ के घर चली गयी, और पतिव्रता धर्म का पालन करने लगी। जब ‘प्रीति’ का राज्य हुआ प्रेमपत्तनम् में, तो उन्होंने कुछ कानून बनाये। मधुर-मेचक को बिलकुल अपने वश में करके उन्होंने पुराने सब कानून पलट दिये। उलटा हो गया सब। तो वही उलटे कानून की जो नगरी है उसका नाम है प्रेमनगरी; और उसका नाम है वृन्दावन! जिन्होंन यह पुस्तक लिखी है उन्होंने वहाँ बताया है कि प्रेमनगरी में चौंसठ कानून लागू होते हैं। उनमें से सिर्फ एक कानून की चर्चा मैं अभी करने वाला हूँ क्योंकि वे सब कानून सुनने में और समझने में काफी देर लगेगी।
तो प्रेमपत्तनम् की एक धारा मैं सुनाता हूँ। श्रीकृष्ण ने रास के प्रसंग में क्या किया? कि गोपियों के हृदय में काम को उद्दीप्त किया- उत्तम्भयन् रतिपतिम्। कल सुनाया था कि काम को उद्दीप्त करने का अर्थ यह हुआ कि पहले जैसा गोपियों के हृदय में काम रहा ही न हो! श्रीकृष्ण ने काम को जागृत किया और जगाने के लिए बड़ी कोशिश करनी पड़ी- बाहुप्रसार, परिरम्भण- इत्यादि, जो इस श्लोक में है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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