विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 21गोपी के प्रेम की परीक्षा-धर्म का प्रलोभन
दृष्टं वनं कुसुमितं राकेशकररञ्जितं। भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम लोग वन की शोभा देखने के लिए आयी हो सचमुच प्राणी के चित्त में प्रकृति की सुषमा देखने का मनोरथ होता ही है। सुषमा परमा शोभा परम शोभा को सुषमा कहते हैं। सुषमा शब्द का मूल अर्थ यदि आपको सुनावें, तो बहुत विलक्षण है। जैसे आँख दो होती तो दोनों अगर बराबर हों और मिलकर देखें तो वे- ‘समा’ हो गयीं। और यदि एक आँख बड़ी और एक आँख छोटी हो और एक बायें देखे और एक दायें देखे तो वे ‘विषमा’ हो गयी। तो सुषमा कहाँ होती है? जहाँ दोनों दोनों कान बराबर हों, दोनों हाथ बराबर हों, दोनों नाम के छेद बराबर हों, दोनों हाथ बराबर हों, दोनों पाँव बराबर हों सौंदर्य ये जो नाप-तौलकर बनाते हैं जैसे दर्जी लोग कपड़ा सीते हैं, नाप-तौलकर बनाते हैं, वैसे विधाता ने नाप-तौलकर शरीर को बनाया है, होंठ की कट कैसी हो, कपोल कैसा हो, दोनों कपोल एक जैसे होने चाहिए। सममितता से सुषमा बनती है। तो सुषमा परमा शोभा! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भागवत 10.29., 22-27
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