विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 23-24प्रेम में सूखी जा रहीं गोपियाँ आखिर बोलीं
बचपन में हमको एक महात्मा ने योग सिखाया था। इसका नाम उन्होंने राजयोग बताया था। उन्होंन कागज पर एक छोटा सा घेरा बनाया और उसके भीतर एक बिन्दी बना दी; और उसके बाद के घेरे में छोटे-छोटे हजारों-सैकड़ों बिन्दु बना दिए। फिर उन्होंने उन छोटे-छोटे बिन्दुओं से एक रेखा खींची जो बाहर को जा रही थी। बोले-देखो, यह बड़ा बिन्दु तो अहम् है और ये जो छोटे-छोटे बिन्दु हैं ये वृत्तियाँ हैं; और यह जो बाहर को जाना है यह इन वृत्तियों का विषयों की ओर जाना है। इसके बाद एक दूसरी तस्वीर बनायी। उसमें बीच में बिन्दु बड़ा और उसके चारों ओर छोटे-छोटे सैकड़ों बिन्दु वैसे ही थे, परंतु वह जो रेखा पहले बाहर की ओर निकलती थी उसको बाहर न ले जाकर भीतर की ओर, बड़े बिन्दु की ओर खींची गयी थी। तो बोले- देखो, जो यह बड़ा बिन्दु है वह तो अहं है और ये जो वृत्तियाँ हैं वे सब की सब चलकर अहं की ओर जा रही हैं। तो उन्होंने बताया कि यह ध्यान करना कि बड़े केंद्र के बीच में अहं बिन्दु के रूप में मैं बैठा हूँ और सारी वृत्तियाँ मेरी ओर दौड़ रही हैं। अब वृत्तियाँ जब मुझको विषय करने के लिए आयीं तो संसार की ओर तो उनकी पीठ हो गयी और हमारी ओर उनका मुँह हो गया। लेकिन अब यह सोचो कि मैं उनको विषय कर रहा हूँ कि वे मुझको विषय कर रही हैं? नारायण, तो ये सब वृत्तियाँ मुझको विषय नहीं कर सकतीं, न एक-एक करके अलग-अलग विषय कर सकती हैं और न सब मिलकर विषय कर सकती हैं। एक अन्धा जिस चीज को नहीं देख सकता, सौ अन्धे भी मिलकर उस चीज को नहीं देख सकते। तो इसका नाम है अध्यात्म। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भागवत, 10.29.29-31
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