विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 8कृपा-योग का आश्रय और चंद्रोदयरन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रितः तदोडुराजः भगवानपि ता रात्रीः शरोदत्फुल्लमल्लिकाः । भगवान ने अपने रमण के योग्य वृन्दावन स्थान, वह शारदीय रात्रि समय और गोपियाँ- इन तीनों का वीक्षण किया, अपनी दृष्टि से तीनों को बनाया और फिर बिह का संकल्प किया। इसमें एक भगवान का गुण निकलता है- ‘आश्रयण-सौकर्यापादकत्व।’ जो लोग भगवान का आश्रय लेना चाहते हैं, उनके अन्दर कोई कमी हो, तो उसको भगवान पूरी कर देते हैं। समझो एक अन्धा है और वह भगवान के दर्शन के लिए व्याकुल है कि हम आँख से देखें- तो भगवान पहले उसको आँखें दे देते हैं और फिर दीखते हैं, देखने की शक्ति देकरके दीखते हैं। एक पंगु है; वह जाना चाहता है भगवान के पासतो उसको पाँव देकर उसको अपने पास आने की शक्ति दे देते हैं। ऐसा कृपालु और कोई नहीं है। तो संसार में कोई ऐसा स्थान नहीं जो भगवान को अपने भीतर ले ले। ऐसा कोई समय नहीं जो भगवान को अपने भीतर ले ले, ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो भगवान को लुभा ले। लेकिन भगवान का हृदय ही इतना कोमल है कि स्थान में भी समा जाते हैं, अट जाते हैं, काल में भी आ जाते हैं, व्यक्ति को भी मिल जाते हैं। यह भगवत्-कृपा है। अपने आश्रित का काम बना देना यह भगवान का स्वभाव है। ‘आश्रित-कार्य-निर्वाहकत्व’- इसको बोलते हैं। हमारे एक साथी हैं; उनको काम करने को कहो तो कहते हैं कि मिथ्या है और दवा खाने को कहो- तो सत्य है; भोजन करना सत्य है, कपड़ा पहनना सत्य है, रुपया पैसा चाहिए तो सत्य है, लेकिन कमाई करने को कहो- तो बोलेंगे सब मिथ्या है। ये मिथ्यावाद सब झूठे हैं, कभी किसी काम के नहीं हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. 10.29.1-2
संबंधित लेख
प्रवचन संख्या | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज