विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीकृपायोग का आश्रय और चंद्रोदयदेखो, आपको सिद्धांत की बात सुनाता हूँ- कच्चे वेदान्तियों की बात नहीं करता हूँ। शांकर वेदान्त की बात कहता हूँ। लेकिन जो लोग किताब पढ़कर शंकर वेदान्त को समझते हैं उनकी समझ में यह बात नहीं आती है। शांकर वेदान्त में मिथ्या माने ब्रह्म होता है। जैसे- सर्प मिथ्या; तो मिथ्या सर्प माने रज्जु हुआ कि नहीं? सर्प मिथ्या है- माने रज्जु ही है, सर्प नहीं है। प्रपञ्च मिथ्या है माने प्रपंच ब्रह्म है। अध्यस्त जो है वह अधिष्ठान से किंचित् भी भिन्न नहीं होता- यह औपनिषद सिद्धांत है, शंकर सिद्धांत है, यह ब्रह्म ज्ञानियों का अनुभव है। जिसको अध्यस्त बोलते हैं, जिसको मिथ्या-मिथ्या बोलते हैं, वह जिसमें अध्यस्त है, जिसमें प्रतीत हो रहा है, जिससे प्रतीत हो रहा है, उससे भिन्न नहीं है, बिलकुल वही है। अगर यह बात समझ में नहीं आयी तो न उपनिषद्-सिद्धांत समझ में आया, न शांकर वेदांत समझ में आया; करते रहो दृश्य से द्रष्टा भिन्न। अभी तो भिन्न शब्द का अर्थ ही समझ में नहीं आया कि- भिन्नत्व क्या होता है। ब्रह्म ज्ञानी के लिए यह नाम रूपात्मक प्रपञ्च भी ब्रह्मात्मक ही होता है, ब्रह्म ही होता है। भगवान् की रासलीला तब समझ में आयेगी जब इस धरातल पर इस पृष्ठभूमि में बुद्धि स्थित होगी जैसा कि गीता में कहा है- बहिरन्तश्च भूतानां अचरं चरमेव च सबके बाहर भी वही; चर भी वही, अचर भी वही। चरत्वेन प्रतीयमान भी ब्रह्म और अचरत्वेन प्रतीयमान भी ब्रह्म। स्वयं प्रकाश अधिष्ठान में अन्य कोई वस्तु नहीं है। यह देखो ब्रह्म- साँवरा-सलोना, व्रजराज-कुँवर बनकर अधरों पर बाँसुरी धारण करके शिर पर मोर-मुकुट बाँधकर, पीताम्बर ओढ़कर सम्पूर्ण जगत् को अपनी ओर आकर्षण करने के लिए प्रत्यक्ष हो रहा है। एक दूसरी बात- जो लोग अपने को तो मानते हैं कि मकान बनाया हमने, हमने घड़ा बनाया, हमने कपड़ा बनाया, हमने पाप बनाया, हमने पुण्य बनाया, हमने सुख बनाया- हमने दुःख बनाया। और संसार किसने बनाया? कि बनाने वाले ईश्वर को हम नहीं मानते हैं। जो अपने को तो कर्ता मानते हैं, पर संसार का कर्ता नहीं मानते हैं वे महामूर्ख हैं। वेदान्त की दृष्टि से भी महामूर्ख हैं और लौकिक युक्तिवाद की दृष्टि से भी महामूर्ख हैं। इस देह में आकर चैतन्य पापी बने, पुण्यात्मा बने, सुखी बने, दुःखी बने, कर्ता बने, और सृष्टि बिना सर्वज्ञ, शक्तिमान, कर्ता के बन जाए- यह विचार बिलकुल गलत है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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