विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 29गोपियों में दास्य का उदयश्रीर्यत्पदाम्बुजरजश्चकमे ...... पुरुषभूषण देहि दास्यम
यह वेदान्त जो है वही भारतीय वैदिक सनातन धर्म की पृष्ठभूमि है। वह धरातल है; इसमें बैठ जाओ तो सब बात समझ में आ जावेगी कि जगत् में ब्रह्म है, चित्त भी ब्रह्म है, जीव भी ब्रह्म है, ज्ञान भी ब्रह्म है, अज्ञान भी ब्रह्म, जड़ भी ब्रह्म, चेतन भी ब्रह्म। अहमिदं सर्व ब्रह्मैव- मैं और यह, वह और तुम, सब परमात्मा हैं। इसमें व्यक्ति का जीवन है वह मर गया और परमेश्वर जी उठा? इसलिए कि जब-सब परमात्मा है तो राग-द्वेष के लिए स्थान नहीं रहा, और जब राग और द्वेष के लिए स्थान नहीं रहा तो व्यक्तित्व तो मर ही गया। उसी का नाम जीवन-मुक्ति है। ‘व्यक्ति’ शब्द का बड़ा विलक्षण अर्थ है। जैसे यह सफेद कोरा कागज है, और इस पर विशेष प्रकार का रंग, एक रेखा, एक मानचित्र, रेखा-चित्र बना दिया जाय; तो कागज है ब्रह्म, और जो मानचित्र रेखा-चित्र है, उसको बोलेंगे व्यक्ति। ‘वि’ माने विशेष, और ‘अक्ति’ माने रंग, एक विशेष प्रकार से किसी चीज को रंग देना। जैसे अंजन भौंह पर लगावें कि छोटी आँख बड़ी दिखने लगे वैसे एक अंजन ब्रह्म में ऐसा लगावें, कि ब्रह्म छोटा दिखने लगे; इस अंजन का नाम ही व्यक्ति है। तो ब्रह्म को व्यक्ति के रूप में देखना है तो भी अंजन चाहिए और अपने को व्यक्ति के रूप में तो भी अंजन चाहिए। सबको ‘हाँ’ करना यह ब्रह्म जीवन है। सबको ‘ना’ बोल देना यह जिज्ञासु जीवन है और आधा को ब्रह्म और आधा को संसार मानना, यह दुःखी जीवन है। तो यह जो श्रीकृष्ण की लीला है, यह जो वृन्दावन धाम है, आप क्या समझते हैं कि वह ब्रह्म नहीं है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भागवत 10.29.37-38
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