विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 41रास-स्थली की शोभा
तो चलो सहेलियो! रँगो वृन्दावन के रंग। हे सहेली, अब वृन्दावन के रंग में रंग जाओ! सजनी, अब उस वृन्दावन के देश में चलो जो आनन्द का देश है, दिव्य प्रेम का देश है। जैसे योगी लोग काल का दो भेद कर देते हैं एक विक्षेपकाल- एक समाधिकाल; अब काल में भला भेद कहाँ से आया? काल तो काल ही है- योगियों ने अपना साधना-परिपाकरूप जो समाधि है उसके काल को समाधिकाल कहा है और बाकी सारा काल विक्षेपकाल है- उसी प्रकार उपासकलोग अन्तर्देश को जिसमें प्रियतम की उपलब्धि होती है दिव्य-देश, वैकुण्ठ-धाम, गोलोक-धाम, साकेत-धाम, कैलाश-धाम इत्यादि बोलते हैं। सबसे सुन्दर देश कौन-सा है? जहाँ अपने प्रियतम की उपलब्धि हो। सबसे बढ़िया देश कौन-सा? जहाँ अपना प्यारा मिले। प्यारा न मिले, तो स्वर्ग भी नरक है। चित्त एकाग्र न हो, तो बढ़िया-से-बढ़िया वस्त भी विषके समान है। तो आओ, अपने मन को उठायें, मन को मन में- से निकालें, मन को विक्षेप में – से निकाल लें, मनको विषय में – से निकाल लें। सन 1934-35 की बात है। प्रयागराज के पास गंगापार झूसी है। वहाँ मैं मौन रहता था, माला फेरता था; बाल बढ़े हुए थे, जूता नहीं पहनता था, और खादी की चद्दर ओढ़ता था। बोलता तो केवल तब जब श्रीमद्भागवत की कथा करनी होती थी। बस, एक घण्टा बोलता था। वहाँ एक महात्मा आये। उनके बाल बड़े-बड़े थे, चन्दन लगाते थे, गौड़ेश्वर-सम्प्रदाय के थे और स्त्री-समुचित वेश-भूषा में रहते थे। श्रीवल्लभाचार्य जी ने लिखा है कि भगवान श्रीकृष्ण को स्त्रियाँ बहुत प्यारी हैं। वैसे कई पुरुष भी भगवान का प्रेम प्राप्त करने के लिए अपने को स्त्री बनाकरके उनके सामने जाते हैं, नारायण, तो वे भी स्त्री वेश-भूषा में रहते थे। जब मैं उनके सामने गोपीगीत की कथा करता तो उनको मन से ही मालूम पड़ता था कि वह मुझको बड़ा भावुक भक्त समझते हैं। बात तो करता नहीं था और वेदान्त की कथा भी नहीं करता था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भागवत, 10.29.44, 45
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