विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का अभिसारएक बार कलकत्ता में एक संकीर्त्तन का जुलूस निकलने वाला था। बिलकुल सत्य कथा है- कोई ऐसी परिस्थिति थी कि सरकार ने धारा एक सौ चौवालीस लगा दिया, बस यह जुलूस नहीं निकल सकता था। संकीर्त्तन वालों ने कहा- हम तो निकालेंगे- भगवान् का जुलूस नहीं बदल सकता। आगे महाराज सैकड़ों मण्डली इकट्ठी हुईं। दस हजार आदमी इकट्ठे हो गये और वह ढोलक बजी, वह मृदंग और मजीरा। पाँव में नूपुर बाँध-बाँध करके वे लोग निकले सड़क पर- बड़े बाजार में, वहाँ संकीर्तन होने लगा तो पुलिस को यह ख्याल छूट गया कि हम पुलिस के अफसर हैं, और हमको कानून के अनुसार काम करवाना चाहिए। वे स्वयं नाचने लग गये। उनके अपने पुलिसपने की जो स्मृति थी वह संकीर्त्तन ने हर ली, उनके मन में रोकने का जो धैर्य था- वह संकीर्त्तन ने हर लिया, उनके अंदर जो विवेक था कि कानून का पालन करवाना है उनसे यह विवेक खो गया, उनको जो शर्म थी कि लोगों के सामने नाचें कैसे सो नष्ट हो गयी। तो धृति, स्मृति, विवेक, लज्जा, बुद्धि ये सब हर लिया। किसने? कि बाँस की बँसुरियाने- बाँसुरी बजाय गौ कि विष बगराय गौ- यह तो बाँसुरी बजा गयी, चारों ओर जहर फैल गया। न किसी को धन का ख्याल, न किसी को धर्म का ख्याल, न किसी को भोग का ख्याल- कृष्ण गृहीतमानसाः कृष्णेन- गृहीतानि मानसानि, धृति, स्मृति, विवेक, लज्जादीनि, याषां ताः हरण कर लिया। अब। क्या हुआ कि आजग्मुरन्योन्यमलक्षितोद्यमाः। एक बार स्वामी रामतीर्थजी मथुरा में आए तो शहर में उनके प्रवचन की व्यवस्था की गयी। किसी ने पूछा कि कृष्ण की बाँसुरी में ऐसा क्या सामर्थ्य था कि रात को गोपियाँ अपना घर द्वार छोड़कर बाँसुरी सुनने के लिए चली गयीं? स्वामी रामतीर्थजी चुप हो गये। हमारों स्त्री-पुरुष उनका व्याख्यान सुनने के लिए आए थे। आपने सुना होगा कि जब वे मथुरा में उतरे तो ट्रेन से उतरकर उन्होंने पाँव धरती पर नहीं रखा था; पहले अपना शिर, धरती पर रखा, कि यह व्रज की भूमि है। वही स्वामी रामतीर्थ थे जिनके वेदान्त के व्याख्यान मिलते हैं। आपको मालूम होगा कि वेदान्ती होने के पहले ये लाहौर में रावी के तट पर कृष्ण-कृष्ण-कृष्ण चिल्लाकर रोते थे। बड़ा भारी उपासना का संस्कार था, उनके चित्त में। और सच पूछो तो वेदान्ती हो जाने के बाद भी उनके भीतर जो तन्मयता का संस्कार था, भले पहले वह तत्पदार्थ प्रधान था, बाद में त्वंपदार्थ प्रधान हो गया, लेकिन तन्मयता का संस्कार उनमें जीवन भर बना रहा। उनके व्याख्यान में विवेक और प्रणाम शास्त्र की उतनी बात देखने में नहीं आती जितनी तन्मयता की। रात के समय जब लोगों ने वंशीध्वनि के सामर्थ्य के बारे में पूछा तो पहले वह चुप हो गये और फिर बोले- अरे। हम यहाँ जवाब नहीं देंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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