विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का अभिसारये त्रिवक्र सच्चिदानन्द, त्रिवक्र माने विश्व, तैजस, प्राज्ञ, त्रिवक्र माने, तीन टेढ़ के बाँके विहारी महाराज जाग्रत में विहार करें, स्वप्न में विहार करें, सुषुप्ति में विहार करें, सोती हुई वृत्ति से विहार करें, सपना देखती हुई वृत्ति से विहार करें, जागती हुई वृत्ति से विहार करें- तुरीयं त्रिषु सन्ततं- संपूर्ण वृत्तियों से उलझा हुआ, उनमें अनुस्यूत, उनमें अनुगत, यहाँ बाँके विहारी इसके मिलने की जो आकांक्षा जागती है वही संसार से वैराग्य देती है। बिना वैराग्य के विद्यावृत्ति अविद्या के निवारण में समर्थ नहीं होती। वैराग्य शक्ति है ऐसा भागवत् में बीसों जगह वर्णन हैं।ज्ञानं च विज्ञान वैराग्ययुक्तं – वैराग्यशक्तिमत् । ज्ञान की शक्ति है वैराग्य। जिस ज्ञान में त्याग का सामर्थ्य नहीं है वह ज्ञान किस काम का और जिस प्रेम में त्याग का सामर्थ्य नही है वह प्रेम किस काम का? और जिस योगी में (समाधिनिष्ठ में) ब्रह्म विषय के त्याग का सामर्थ्य नही है वह योगी किस काम का। अरे, सत् से प्रेम करो तब भी त्याग करना पड़ेगा; चित् से प्रेम करो तब भी त्याग करना पड़ेगा; आनन्द से त्याग करो, तब भी त्याग करना पड़ेगा; त्याग किये बिना आज तक कोई गोपी हुआ? त्याग किये बिना कोई आजतक योगी हुआ है? त्याग किए बिना आज तक कोई ज्ञानी हुआ है? अपने बल से त्याग- यह साधान्तर में है, दूसरे साधनों में है। नारायण, और ईश्वर के बल से त्याग, वैराग्य- यह भक्ति मार्ग में है। बाँसुरी बजा-बजा करके अपनी ओर सबको खींच लिया- व्रजस्त्रियः कृष्णगृहीतमानसाः। व्रजस्त्री कोई साधारण गोपी नहीं है। एक तो नित्यसिद्ध गोपी होती है, जो गोलोक में भगवान् के साथ रहती हैं और अवतार लेती हैं। एक साधन-सिद्धा गोपी होती हैं। साधन-सिद्धों में भी कृपा-सिद्ध होते हैं और साधनसिद्ध होते हैं; इनके भी बहुत भेद हैं। जो पूर्व जन्म में ऋषि थे वो गोपी हुए, जो पूर्व जन्म में श्रुतियाँ हैं वे गोपी हुईं, जिन्होंने अष्टादशाक्षर मंत्र का ‘क्ली कृष्णाय गोविन्दाय’ इन मंत्रों का जाप किया था वे गोपी हुईं गोपी तरह-तरह की हैं। कोई देवी हैं तो वे गोपी हुईं। कहीं नारद, शुक, अर्जुन आदि भी कभी-कभी अपने साधना के उत्कर्ष से गोपी- भाव को प्राप्त होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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