योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 87

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

Prev.png

सत्रहवाँ अध्याय
राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका


भीष्म के यह कहते ही जहाँ एक ओर आनन्द की ध्वनि गूँज उठी, वहाँ दूसरी ओर मानो वज्र टूट पड़ा। विघ्नतोषी लोगों की आशाओं पर पानी फिर गया, और सन्नाटा छा गया। तत्काल सबको लगा कि बस कुछ बखेड़ा अवश्य होगा। अतिथियों की मंडली में चेदि देश का राजा शिशुपाल बैठा हुआ था। यह महाराज कृष्णचन्द्र का मौसेरा भाई था पर सदा से ही जरासंध का पक्ष लेकर कृष्ण से लड़ता आया था। भीष्म के वचन सुनकर वह क्रोधान्ध हो गया और भीष्म, युधिष्ठिर तथा कृष्ण को बुरा-भला कहने लगा। उसके कथन का सार यह था कि युधिष्ठिर और भीष्म को सर्वप्रथम कृष्ण को अर्ध्य देकर सारी सभा का अपमान किया है। कृष्ण कदापि इस मान के योग्य नहीं हैं। न तो वे मुकुटधारी राजा हैं और न वयस में बड़े हैं। न वे आचार्य हैं और न सबसे बलवान योद्धा हैं। फिर क्यों उन्हें इस प्रकार सबसे ऊँचा आसन प्रदान किया गया? फिर शिशुपाल ने उपस्थित राजाओं के नाम लिए और भीष्म को चुनौती देते हुए कहा कि आप ही बताइये, इन सबकी उपस्थिति में क्यों कृष्ण की यों प्रतिष्ठा की गई? उसने कहा कि यदि वयस का विचार हो तो उसके पिता वसुदेव, धृतराष्ट्र, द्रुपद, भीष्म और कृपाचार्य आदि ज्येष्ठ पुरुष उपस्थित हैं। यदि विद्या देखी जाये तो द्रोण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा तथा दूसरे महान विद्वान यहाँ उपस्थित हैं। राजाओं में भी बड़े-बड़े वीर योद्धा राजा दीख रहे हैं। फिर भीष्म ने इस मान के लिए कृष्ण का नाम ही क्यों लिया जो न आचार्य है, न राजा है, न वयस में बड़ा और न महाबली है।

उसने आगे कहा, जिसने छल से राजा जरासंध का वध किया, बड़े दुख की बात है कि उसे अर्ध्य देकर भीष्म ने पक्षपातपूर्ण अधर्म का काम किया है और सबसे अधिक दुख इस बात का है कि युधिष्ठिर ने धर्म का अवतार होकर भी इस निर्णय को मान लिया। पुनः धिक्कार है कृष्ण पर जिसने इस अधम व्यवस्था को स्वीकार किया।

इसके पश्चात महाभारत में लिखा है कि वह अपने साथियों सहित सभा से उठकर चल दिया।

युधिष्ठिर उसके पीछे गया और मनाने लगा। उसने कहा, "शिशुपाल! देखो, जितने विद्वान और योद्धागण यहाँ बैठे हैं, वे सब इस बात को मानते हैं कि कृष्ण ही सम्मान के उपयुक्त हैं। फिर तू क्यों ऐसे कठोर वचन बोलता है?"

भीष्म ने भी अपने उत्तर में कहा कि शिशुपाल धर्म-मार्ग को नहीं जानता। क्षत्रियों की यह मर्यादा है कि जो शत्रु पर जय पाकर भी उसे छोड़ दें वह उसका गुरु हो जाता है। कृष्ण न केवल महाबली क्षत्रिय है जिन्होंने हजारों क्षत्रियों को स्वतंत्रता प्रदान की है, वरन् वे वेदों के ज्ञाता और विद्वान हैं और इसलिए इन दोनों गुणों से संयुक्त होने से हम सबमें से वे ही गौरवान्वित होने के योग्य है।[1]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वेद वेदांग विज्ञानं बलं चाप्यधिकं तथा। नृणांलोके हि को ऽन्यो ऽस्ति विशिष्ट केशवाट्टते।।

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः